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शनिवार, 5 दिसंबर 2009

आखिरी पड़ाव पर अकेले

महिला कैदी-18

मेरी किताब सलाखों में सिसकती सांसे से
 
उम्र के आखिरी पड़ाव पर अगर किसी को जेल की जिंदगी गुजारनी पड़े तो यह उसकी बदकिस्मती ही कही जाएगी। ऐसी ही बदकिस्मत महिला थी साठ वर्षीय शीला। पारिवारिक कलह ने उसके घर का सुख चैन छीन लिया और वह हत्यारिन करार दे दी गई। परिवार में होने वाली खटपट का ही नतीजा था कि उसने अपनी ही जेठानी का कत्ल कर दिया। इस घटना ने उसके परिवार को कहीं का नहीं छोड़ा। जेठानी दुनिया छोड़ गई, वह जेल पहुंच गई और उसके बच्चे दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हो गए।

आम घरों की तरह शीला के घर में भी पहले सब कुछ सामान्य चल रहा था। शीला और उसकी जेठानी के आपस में कम बनती थी। देवरानी-जेठानी के बीच छत्तीस का यह आंकड़ा धीरे-धीरे पारिवारिक सुख-चैन को लीलने लगा। छोटी-मोटी बातों को लेकर रोज होने वाली उनके बीच की तू-तू - मैं-मैं दिनोंदिन बढ़ती गई। दोनों एक दूसरे को खटकने लगी। उस दिन तो हद ही हो गई,जब शीला ने अपनी ही जेठानी को जलाकर मार दिया। क्रोध और नफरत की आग ने उस महिला की बुद्धि को इतना कुंद कर दिया था कि उसने बिना आगे पीछे की सोचे इस क्रूर हादसे को अंजाम दे डाला। इस जुर्म के चलते वह जेल पहुंच गई।

शीला की जिंदगी में यह दूसरा ऐसा मोड़ था जिसने उसे कहीं का नहीं छोड़ा। उसके जीवन में ऐसा ही एक भूचाल लगभग पच्चीस साल पहले आया था जब उसका पति सड़क हादसे में मारा गया। उसका पति ट्रक ड्राइवर था। ट्रक चलाने के दौरान हुए सड़क हादसे में वह चल बसा। जवानी के मोड़ पर ही शीला का पति उसका साथ छोड़ गया। चारों बच्चों की जिम्मेदारी भी उसी पर आ पड़ी। कुछ सालों तक तो सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहा, लेकिन धीरे-धीरे बिगड़े पारिवारिक माहौल ने उसे हत्यारिन बना दिया।

एक बेटे व एक बेटी की शादी तो उसने पहले ही कर दी थी, लेकिन दो बेटे कुंवारे थे।जेल में वह अपने दोनों बेटों की शादी व अन्य घर वालों को लेकर फिक्रमन्द रहती थी। जब कभी उसे घरवालों की याद आती तो,वह उदास हो जाती और खो जाती थी अपनी बीती खुशहाल जिंदगी के पलों में।

एक पोती की दादी व तीन दोहितों की नानी शीला अपनों से दूर थी। जेल में उसे अपनों की याद सताती थी। उसे एहसास था कि उसकी जेल की जिन्दगी कुछ अरसे की नहीं है। शीला को उम्र कैद की सजा हुई थी और उसे सजा भुगतते कुछ साल ही हुए थे। उम्र की यह अखिरी मंजिल उसे किसी पहाड़ से कम नहीं लगती थी। महिला कैदियों और प्रहरियों के बीच 'मांÓ के नाम से पुकारी जाने वाली यह बुजुर्ग महिला अक्सर खोई-खोई रहती थी।

बिगड़ गई लाडो

महिला कैदी-17

मेरी किताब सलाखों में सिसकती सांसे से




एक औरत ही औरत की आबरू नीलाम करने में भागीदार बन जाए तो इससे बड़ी शर्म की क्या बात होगी। ऐसी ही एक काली करतूत को अंजाम दिया पैंतालीस वर्षीय लाडो देवी ने। लाडो को अपने किए का फल मिला और वह पहुंच गई जेल। उसकी हरकत नारी मर्यादा के खिलाफ थी। उसने एक लड़की का अपहरण कर उसका बलात्कार कराने में मदद की। लाडो की बीती जिन्दगी पर नजर डालने पर लगता है कि परिस्थितियों के बिगडऩे से उसके जीवन में ऐसा मोड़ आया, जिससे वह ऐसे घिनौने अपराध को अंजाम दे बैठी।

लाडो को सात साल की सजा हुई । लाडो ने एक लड़की का अपहरण कर उसे अपने घर में कैद रखा। उस लड़की के साथ लाडो के ही घर में लाडो के एक जानकार ने बलात्कार किया। उसके बाद लाडो उसे जयपुर से दूसरे शहरों में ले गई। नौ दिनों तक वह उस लड़की को विभिन्न शहरों में घूमाती रही। इस दौरान भी लड़की के साथ बलात्कार किया गया और इसमें सहयोगी बनी लाडो देवी। नौ दिन बाद लड़की को बरामद किया गया। लाडो अपने गलत कारनामे के चलते जेल पहुंच गई।

आखिर पैंतालीस वर्षीय यह महिला इस रास्ते की ओर कैसे चल पड़ीï? इस बात का कुछ- कुछ खुलासा होता है लाडो की बीती जिन्दगी को जानने पर।

जयपुर जिले के ही एक गांव की रहने वाली लाडो का विवाह इसी जिले के एक कस्बे में हुआ था। शादी के शुरुआती सात-आठ साल ही खुशी- खुशी गुजरे होंगे कि उसका पति टीबी की बीमारी से चल बसा। लाडो जवानी में ही विधवा हो गई। फिर उसका दूसरा विवाह किया। विवाह के बाद लाडो का जीवन फिर से सामान्य हो गया। पिछले पति की मौत का गम वक्त के मरहम से ठीक हो गया। दूसरे पति के साथ वह खुशियां बांटने लगी। लेकिन शायद लाडो की किस्मत में लम्बे वक्त तक पति का प्यार नहीं था। उसके पति के उसकी देवरानी से अवैध सम्बन्ध हो गए। अपने पति के देवरानी से नाजायज रिश्ते ने तो मानो लाडो का सुख चैन ही छीन लिया। उसने कई बार अपने पति को समझाया व उसे सही रास्ते पर लाने की कोशिश की, लेकिन वह इसमें नाकाम रही। गलत राह पर भटके उसके पति ने लाडो को मारना- पीटना शुरू कर दिया। इन सब परिस्थितियों के चलते लाडो ससुराल छोड़कर जयपुर चली आई। वह जयपुर में मेहनत मजदूरी कर अपना गुजर बसर करने लगी। दो पतियों का साथ छूट जाने से वह बुरी तरह टूट चुकी थी। जवानी के दौर में उसे ऐसे जख्म मिले कि सुख- चैन उससे कोसों दूर चला गया। बिगड़े पारिवारिक माहौल ने अन्तत: लाडो देवी को ही बिगाड़ कर रख दिया और उसे ऐसे अपराध के दलदल में डाल दिया, जिसके बारे में एक नारी के लिए सोचना भी शर्म की बात है।

गुरुवार, 3 दिसंबर 2009

बिखर गया परिवार

महिला कैदी-16




मेरी किताब सलाखों में सिसकती सांसे से


राह भटके दो नादानों ने अपने ही परिवार को तबाही के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया। देवर- भाभी के अवैध रिश्ते का अंत हुआ भाभी की मौत के साथ। भाभी दुनिया छोड़ गई और देवर को उसके घर वाले छोड़ गए। पहुंच गए सलाखों में।

महिला कैदी कमली के साथ ऐसा ही वाकिया जुड़ा हुआ था। उसके छोटे बेटे और बड़े बेटे की बहू के बीच के अवैध रिश्ते ने अंतत: कमली, उसके पति व बड़े बेेटे को सलाखों में पहुंचा दिया।

पहले कमली की जिन्दगी की रेल गृहस्थी की पटरी पर सुकून से गुजर रही थी। घर में खुशियों का डेरा था। उनके अपने खेत थे। पति- पत्नी खेती कर गुजर- बसर करते थे। दो बेटे थे। आगे पढ़ाई नहीं कर पाने पर कमली ने अपने बड़े बेेटे की शादी कर दी थी। उस वक्त बड़े बेटे की उम्र लगभग २२ वर्ष थी। बहू पाकर कमली खुश थी। पांचवीं पास कमली अपनी दसवीं पास बहू लीला से काफी उम्मीदें पाले थी। वह उसे अपना सहारा मानती थी। लेकिन होनी को अलग ही मंजूर था। शादी के चंद दिनों बाद ही लीला अपने देवर राजेश में अधिक दिलचस्पी लïेने लगी। वे दोनों पहले से ही एक- दूसरे को जानते थे। दोनों नजदीक के ही एक गांव के स्कूल में साथ जो पढ़ते थे। एक स्कूल में साथ पढऩे की यादों के साथ वे एक- दूसरे के कुछ ज्यादा ही नजदीक आ गए। मामला शारीरिक सम्बन्ध तक जा पहुंचा। उन दोनों में शारीरिक सम्बन्ध का सिलसिला चलता रहा।

कहते हैं पाप कभी छुपता नहीं। आखिर उनके इस रिश्ते की भनक उनके घर वालों को लग ही गई और फैसला किया लीला को तलाक देने का। कमली ने लीला को पीहर छोड़ दिया। वे उसे छोडकर अपने बेटे की दूसरी शादी करना चाहते थे। दोनों के अवैध रिश्ते से निपटने का उनके पास यही एक चारा था।बार-बार पीहर छोड़ जाने के बावजूद लीला के पीहर वाले फिर उसे ससुराल छोड़ जाते।

लीला की शादी हुए अभी आठ माह ही हुए थे। इस दौरान वह सिर्फ तीन बार ही ससुराल आई थी। चंद दिन रुकने के बाद उसे वापस पीहर भेज दिया जाता। कारण था लीला से पीछा छुड़वाने की मंशा। लीला का पति भी उससे नफरत करने लगा था। उसने कई बार उसको समझाया भी। लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात। चौथी बार लीला ससुराल आई हुई थी। पीहर वालों ने उसके ससुराल वालों पर दबाव डालकर जो उसे भेजा था। आने के तीन- चार दिन बाद ही एक रात को लीला के पति ने लीला को जबर्दस्ती जहर पिला दिया। उसे यही एक तरीका नजर आया उससे पीछा छुड़ाने का। शोरगुल होने पर कमली भी कमरे में पहुंची पर उसने बहू को बचाने का प्रयास नहीं किया बल्कि चुपचाप रहकर एक तरह से अपनी मौन स्वीकृति दे दी। जहर से लीला की इहलीला समाप्त हो गई और यहीं से हुई कमली, उसके पति और बड़े बेटे के बुरे दिनों की शुरुआत। लीला के पीहर वालों ने उसके पति व सास- ससुर के खिलाफ मामला दर्ज कराया। कमली, उसके पति व बड़े बेटे को सात-सात साल की सजा हो गई।

अवैध रिश्ते की दीमक ने कमली के परिवार को चट कर दिया। वे तीनों जेल पह़ूंच गए और छोटा बेटा मारा- मारा फिरता रहा वह कभी मामा के पास रहने चला जाता , तो कभी अकेला रहता। शायद बाद में तो उसे भी पश्चाताप हुआ हो कि उसकी गलत हरकत ने उसके परिवार को कहीं का नहीं छोड़ा। बदनामी भी हुई और बुरे दिन भी देखने पड़े।