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मंगलवार, 13 अक्तूबर 2009

किसका आसरा?

महिला कैदी-15

मेरी किताब सलाखों में सिसकती सांसे की 15वीं कड़ी

पति के गलत कारनामे ने कमला की जिंदगी को नारकीय बना दिया। उसे अपने पति के गुनाह की सजा भुगत पड़ी। जेल मेंं ही वह मौत के नजदीक पहंूच गई।जेल पहंंूूचने केेढेेड साल बाद ही वह कैंसर की चपेट मेंं आ गई। गुनाह पचास वर्षीय कमला का नहींं उसकेे पति का था। उसी ने खेत में काम करने आई एक महिला से बलात्कार किया था। पति के साथ कमला भी फंस गई। आरोप लगा बलात्कार में मदद करने का।
जेल मेंं बीमारी से जूझ रही कमला की यही ख्वाहिश थी कि उसका दम निकले तो अपने घर में। जिंदगी के बचे दिन वह अपने बच्चों के साथ गुजारना चाहती थी। इच्छा थी पति भी जल्द जेल से छूट जाए और उसके अंतिम पल में सब कुछ सामान्य हो जाए।
मूलत: मन्दसौर क्षेत्र की रहने वाली कमला का ताल्लुक निम्न वर्ग से था। वह और उसका पति खेत में मजदूरी करते थे। मजदूरी से ही वे अपने तीन बेटे -बेटियों व अपना गुजारा करते थे। वे खेतों का काम ठेके पर लेकर अन्य मजदूरों से भी काम कराया करते थे। वे मन्दसौर क्षेत्र से जुड़े राजस्थान के खेतों में भी मजदूरी करते थे। एक घटना ने उनके परिवार को तबाह करकेे रख दिया।उन दिनोंं कमला और उसके पति ने एक खेत की मजदूरी का ठेका लिया था। खेत में काम करने आए श्रमिकों में लिछमा भी थी। कमला के पति की नीयत खराब हो गई। उसने मौका देखकर लिछमा को खेत में ही अपनी हवस का शिकार बना डाला। कमला इस सबसे अनजान थी। उसे बाद में पता चला जब महिला ने हल्ला मचाया। बेकसूर कमला तो कुुछ समझ भी नहींं पाई थी। भला वो क्योंं करती ऐसा घिनौना काम। कमला पर बलात्कार में मदद करने व उसके पति पर बलात्कार का मामला दर्ज हुआ। दोनों को सजा हुई।
पति-पत्नी के जेल पहुंचने पर उनके तीन बेटे-बेटी बेघर हो गए। उसका बड़ा बेटा घर जंवाई बन गया।अपने छोटे भाई व बहिन को भी वह अपने ससुराल ही ले गया।
इस हादसे ने कमला को कहींं का नहीं छोड़ा। सलाखों में कै द कमला बरसों तक अपने पति और बच्चोंं से मिलने तक को तरस गई। कैंसर जैसी बीमारी में भी उसका हाल जानने वाला अपना कोई नहीं था। न उसके पीहर में कोई अपना था और न ससुराल में। पति खुद जेल में कैद थे और बच्चे नामसझ थे। वे तो खुद सहारे के मोहताज थे।
कैंसर पीडि़त इस महिला कैदी का जेल में इलाज चला। जेल मेंं उसके जहन में कई सवाल उभरते थे। वह सोचती-जेल से छूटने पर भी तो वह चैन की जिंदगी नहीं गुजार सकेगी। कौन करेगा उसकी देखभाल? कैसे होगा उसका इलाज? उसका पति तो बन्द ही है। कौन बनेगा उस बेसहारा का सहारा?
एक छोटी सी घटना ने कमला के परिवार को कहीं का नहीं छोड़ा। कमला को ऐसे मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया जिसके बारे में शायद उसने सपने में भी नहीं सोचा होगा।

रिश्तों में दरार

महिला कैदी-14

मेरी किताब सलाखों में सिसकती सांसे की चोदहवीं कड़ी

पति की प्रताडऩा ने परमा को कातिल बना दिया। वह नहीं चाहती थी अपने पति को परलोक पहुंचाना, लेकिन उसके सब्र का बांध टूट चुका था। आए दिन पियक्कड़ पति के लात घूसे झेलना अब उसकी वश की बात नहीं रही थी। परेशान होकर परमा ने पति का कत्ल कर दिया। इसमें सहभागी बना उसका बड़ा बेटा व बेटे का दोस्त।
दिल दहल जाता है यह सुनकर कि परमेश्वर का दर्जा प्राप्त पति की हत्या पत्नी ने कर दी? आखिर पति ने परिस्थितियां ही ऐसी पैदा कर दी थी। परमा शादी के १९ साल तक इन परिस्थितियों और विपरीत हालात से जूझती रही, लेकिन फिर एक दिन बोखलाई परमा को पति से छुटकारे का एक ही रास्ता नजर आया और वह था उसे मौत की नींद सुलाना।
इस हादसे ने परमा के परिवार को तबाह कर दिया। परमा व उसका बड़ा बेटा जेल पहुंच गए और छोटा बेटा दर-दर की ठोकरें खाता फिर रहा है। इस हादसे का चश्मदीद गवाह था परमा का छोटा बेटा व उसका दोस्त। अपने छोटे बेटे की गवाही से ही परमा जेल में पहुंची।
मूलत: दिल्ली की रहने वाली परमा का विवाह जयपुर में हुआ था। पति फर्नीचर का काम करते थे। घर का माहौल ठीक था। नववधू बनकर आई परमा और उसका पति ही जयपुर में रहते थे। अन्य ससुराल वाले दूसरे शहर में रहते थे। परमा के पति रणजीत की शराब पीने की लत थी। परमा ने सोचा शायद वे शराब छोड़ देंगे। उसने अपने पति से शराब छोडऩे ने लिए कई बार कहा लेकिन वह नहीं माना। और फिर शादी के चंद महीनों बाद ही परमा पियक्कड़ पति की प्रताडऩा का शिकार होने लगी। फिर भी परमा को उम्मीद थी कि वक्त के साथ-साथ सब सुधर जाएगा। इस बीच परमा के दो लड़के हुए। परमा चुपचाप अपने पति की मार झेलती रही। जब- जब उसने पति का विरोध किया, उसे प्रताडऩा दुगनी ही झेलनी पड़ी। परमा आस लगाए बैठी थी कि बेटों के बड़े होने पर शायद उसका पति लाइन पर आ जाए। इसी उम्मीद से वह झेलती रही अपने पति की प्रताडऩा।
एक अरसे तक पति की प्रताडऩा झेलत झेलते परमा परेेशान हो चुकी थी। एक लम्बे अरसे से वह घुटन भरी जिन्दगी जी रही थी। अन्य ससुराल जन या पीहर वाले जयपुर में रहते नहीं थे, जिनके जरिए वह अपने पति को सही दिशा दिखा सके या जिनको अपनी पीड़ा बता सके। परमा का बड़ा बेटा भी पिता की हरकतों से परेशान था। आए दिन मां की पिटाई भी उसे बर्दाश्त नहीं थी।
परमा के दोनों बेटे किशोर हो चुके थे। पिटाई से पीडि़त परमा को चहुं ओर अंधकार ही नजर आने लगा और फिर एक दिन परमा ने पति से हमेशा के लिए पीछा छुड़ाने का मानस बना लिया। उसने इसमें शामिल किया अपने बेटे व बेटे के दोस्त को। परमा ने पति को जहरीला पदार्थ मिलाकर शराब पिला दी। परमा का बड़ा बेटा भी इस साजिश में शामिल था। और फिर उस रात परमा का पति रणजीत चिर निद्रा में सो गया। परमा का छोटा बेटा यह सब देख रहा था। पिता की मौत उसे बर्दाश्त नहीं हुई और फिर वह झगड़ पड़ा अपनी मां व भाई से। छोटे बेटे ने अपनी मां व भाई के खिलाफ गवाही दी।
बेटे की गवाही से परमा व उसके बड़े बेटे को जेल हो गई। पति की गलत आदतों से परमा तो कहीं की नहीं रही। खुद व बेटा जेल पहुंच गए और छोटा बेटा लावारिश हो गया। दोनों बेटों की पढ़ाई छूट गई। शराब पीने व पत्नी को पीटने की गलत आदत ने इस परिवार को तबाह कर दिया। पत्नी को पति का कातिल बना दिया और बेटे को बाप का। पिता की हत्या से छोटा बेटा अपनी खास मां और भाई से ही नफरत करने लगा। पति की गलत आदत और बिना सोचे गलत राह की ओर बढ़ते चले जाने का ही नतीजा था कि खास रिश्तों में ही दरारें पड़ गईं।

कलह का कहर

मेरी किताब सलाखों में सिसकती सांसे की तेरहवीं कड़ी

पारिवारिक कलह परिवार के सुख- चैन को लील लेती है। तू- तू मैं- मैं से शुरू हुआ कलह का सफर कई बार भयानक अंजाम को पहुंचता है। जोहरा के साथ भी ऐसा ही वाकिया जुड़ा हुआ है। ननद- भौजाई की कलह ने भौजाई को परलोक पहुंचा दिया और ननद को सलाखों में। जोहरा को अपनी भौजाई को जलाकर मारने के आरोप में उम्रकैद की सजा हुई।
छब्बीस वर्षीय जोहरा ने अपनी गलत हरकतों से न केवल पीहर का सुख चैन छीन लिया बल्कि ससुराल की अपनी गृहस्थी को भी पटरी से उतार लिया। जोहरा के गलत रास्ते पर ही चलने का नतीजा था कि कई साल पहले पति ने भी उसे तलाक दे दिया था।
पति के छोड़ देने के बाद जोहरा अपने पीहर में रहती थी। उसके तीन भाई थे। तीसरे नम्बर के भाई की शादी हुए लगभग साढ़े चार साल ही हुए थे। इस छोटे भाई की पत्नी और जोहरा में शुरू से ही कम बनती थी। दरअसल जोहरा की आदतें व चाल चलन ठीक नहीं था। इसी सबके चलते जोहरा की भौजाई उससे चिढ़ती थी। दोनों में बात- बात पर तू- तू मैं- मैं होना और झगड़ा आम बात थी। वह अपने भाइयों को भी भौजाई के बारे में उल्टी- सीधी बातें बताती थी। जोहरा की इन सब आदतों की शिकार उसकी भौजाई को होना पड़ता। उसके अपने जेठ भी उसे लताड़ते और पति भी उसकी पिटाई करता। जोहरा अक्सर अपने भाई को सिखा- सिखाकर भौजाई की पिटवाई कराती रहती थी। उधर भौजाई को भी जोहरा फूटी आंख नहीं सुहाती थी। ननद से न बनने का एक कारण ननद का बदचलन होना था। दरअसल जोहरा के अपने बुआ के लड़के से ही नाजायज सम्बन्ध थे। बुआ के लड़के से गलत सम्बन्ध के चलते ही तो पति ने जोहरा को छोड़ दिया था। फिर भी जोहरा नहीं संभली। जारी रखा गुमराही की ओर कदम बढ़ाना। पीहर में उनका मकान और बुआ का मकान सटा हुआ था और इसी कारण उनके अवैध रिश्ते आगे बढ़ते गए। अवैध रिश्ते ने उसके पति के रिश्ते को छुड़वा दिया। जोहरा अपने ही मासूम बेटे से दूर हो गई। लेकिन नहीं दूर हुई तो अपने प्रेमी से।
दिशाहीन जोहरा अपनी भौजाई को भी अपने संबंधों में रोड़ा समझती थी। उधर भौजाई भी जोहरा और जोहरा के बहकाने से अन्य ससुरालजनों की प्रताडऩा से पीडि़त थी। जोहरा के प्रेमी का घर आना- जाना भी उसे नहीं सुहाता था।
शादी के दो साल बाद ही भौजाई ससुराल के माहौल से तंग आ चुकी थी। खास तौर से अपनी ननद से। और फिर एक दिन भोजाई ने तेल छिड़ककर खुद को जला लिया। मरने से पहले बयान दिया कि उसको उसकी ननद जोहरा, जोहरा के प्रेमी, उसके जेठ ने जलाकर मार दिया। जोहरा की हर बात पर यकीन करके उसे प्रताडि़त करने वाले जेठ का भी भौजाई ने नम्बर ले लिया और उस पर भी इस साजिश में शामिल होने का आरोप लगा दिया।
इसी के चलते जोहरा पहुंच गई सलाखों में। जोहरा के प्रेमी और बड़े जेठ को भी उम्रकैद हो गई। जोहरा की गलत हरकतों ने उसे कहीं का नहीं छोड़ा। पति, बेटा व ससुराल तो पहले ही छूट गया था, अब पीहर भी छूट गया। ठिकाना बन गया जेल।