tag:blogger.com,1999:blog-4520012288467128712024-02-22T16:29:13.646+05:30चाँद मोहम्मदचाँद मोहम्मदhttp://www.blogger.com/profile/05619482915836049968noreply@blogger.comBlogger25125tag:blogger.com,1999:blog-452001228846712871.post-82304233187532653542017-02-02T16:51:00.001+05:302017-02-02T16:51:49.369+05:30Chand Mohmmed Sheikh<iframe allowfullscreen="" frameborder="0" height="270" src="https://www.youtube.com/embed/SvYA5K8Nr60" width="480"></iframe>चाँद मोहम्मदhttp://www.blogger.com/profile/05619482915836049968noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-452001228846712871.post-63451799742849855542010-01-14T15:59:00.002+05:302010-05-26T12:02:20.059+05:30बहके कदम<strong><span style="color: blue;">महिला कैदी-20</span></strong><br />
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<span style="color: red;">मेरी किताब </span><span style="color: blue;">सलाखों में सिसकती सांसे</span> <span style="color: red;">से</span> <br />
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<span style="color: blue;"> बहके कदम कई मर्तबा जिन्दगी को ऐसे मुकाम पर ला खड़ा कर देते हैं जहां सिवाय अंधकार, मायूसी और पश्चाताप के कुछ नहीं होता। बाइस वर्षीय प्रिया की जिन्दगी से भी ऐसा ही दुखद वाकिया जुड़ा हुआ है। उसके बहके कदमों का ही नतीजा था कि पति के कत्ल के जुर्म में उसे उम्र कैद की सजा हो गई । दिग्भ्रमित व राह भटकी इस नवविवाहिता की बदकिस्मती ही कही जाएगी कि शादी के चन्द महीनों बाद ही वह सेज से जेल की कोठरी में पहुंच गई।</span><br />
<a name='more'></a><br />
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नौवीं पास इस अभागी लड़की की शादी अलवर जिले के एक गांव में हुई थी। दूसरे राज्य से यहां ब्याही प्रिया का शुरुआती वैवाहिक जीवन खुशियों से भरपूर था। पति की दुकान थी और वह घर की जिम्मेदारी निभा रही थी। विवाह के कुछ वक्त बाद ही वह राह भटक गई और अपने देवर से दिल लगा बैठी। इन दोनों की अन्तरंगता बढ़ती गई और उन्होंने आगे की कुछ नहीं सोची। विवाह के तीन माह बाद ही प्रिया को पति की हत्या के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया गया। आरोप था, उसने अपने देवर व ननदोई के साथ मिलकर पति की हत्या की। हत्या के पीछे कारण देवर से अवैध रिश्ता होना और इसी के चलते पति को रास्ते से हटाना माना गया।<br />
<br />
प्रिया को अपराधी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई गई । उसके देवर व ननदोई को भी अपराधी करार दिया गया। इस हादसे ने प्रिया को ऐसे मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया , जहां से आगे रास्ता कहां जाता है, वह खुद नहीं जानती थी। उसका भविष्य क्या है, खुद को पता नहीं था। प्रिया की नादानी ने उसकी जिंदगी को तबाह करके रख दिया। उसका बना हुआ जोड़ा और परिवार बिखर कर रह गया।चाँद मोहम्मदhttp://www.blogger.com/profile/05619482915836049968noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-452001228846712871.post-35749366181375710562010-01-14T15:56:00.001+05:302010-01-14T16:03:39.952+05:30काम नहीं आई हराम की कमाई<span style="background-color: blue;"></span><br />
<strong><span style="color: blue;">महिला कैदी-19</span></strong><br />
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<strong>मेरी किताब <span style="color: magenta;">सलाखों में सिसकती सांसे</span> से</strong> <br />
<span style="color: red;"> </span><br />
<span style="color: red;">उसका ख्वाब बहुत अमीर बनने का था। इसीलिए तो उसने अफीम का धंधा शुरू किया। इसी धंधे की खातिर तो उसने अपने पहले पति को भी छोड़ दिया और शादी रचा ली उस व्यक्ति से जो खुद अफीम के कारोबार में शामिल था। अमीर बनने की चाह ने उसको जेल की कोठरी में पहुंचा दिया। जेल की कोठरी ही उसका लंबा ठिकाना बन गई।</span><br />
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यह दास्तान है चालीस वर्षीय विद्या की, जो पिछले कई वर्षों से अफीम का गैर कानूनी काम करती थी। मध्यप्रदेश के मन्दसौर की रहने वाली विद्या ने चित्तौडग़ढ़ जिले के प्रतापगढ़ क्षेत्र को अपना कार्य क्षेत्र बनाया। वह चाहती थी लाखों की मालकिन बनना। इसी मानसिकता के चलते उसने इस धंधे में पैर पसारे। उसने शुरुआत छोटे पैमाने से की। वह कम दामों पर अफीम खरीदती थी और आस-पास के इलाके में आपूर्ति करती। इस गैरकानूनी धंधे की मोटी कमाई से वह इस दलदल की ओर बढ़ती गई। वह खुद ही अफीम तैयार करने लगी और सप्लाई का दायरा बढ़ता गया। अफीम का गैर कानूनी काम करने वालों में धीरे- धीरे उसकी पहचान बन गई। इस बीच विद्या अफीम का ही काम करने वाले एक व्यक्ति के सम्पर्क में आई। दोनों एक- दूसरे में दिलचस्पी लेने लगे। और फिर दोनों की एक- दूसरे के प्रति दिलचस्पी और दोनों मिलकर इस धंधे को आगे बढ़ाने की चाह के चलते दोनों ने शादी कर ली।<br />
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विद्या ने अपने पहले पति को छोड़ दिया। उसको लगा वह उसके धंधे के हिसाब से उतना फायदेमन्द नहीं है। विद्या और उसके दूसरे पति ने मिलकर फिर जोर- शोर से धंधा शुरू किया। विद्या राज्य के विभिन्न जिलों में अफीम सप्लाई करने लगी। दोनों ने मिलकर इस धंधे में अच्छा- खासा माल जुटाया। कहने को विद्या के स्लेट बनाने की फैक्ट्री थी लेकिन असली कमाई तो उसके अफीम से ही थी। वह इस धंधे में बेखौफ होकर आगे बढ़ती रही लेकिन एक दिन रंगे हाथों पकड़ी गई। वह दोषी पाई गई और उसे सजा हो गई चौदह वर्ष की। हालांकि विद्या पर अफीम कारोबार से जुड़े चार मामले और चले लेकिन वह उनमें बरी हो गई। अवैध तरीके से माल कमाकर एशोआराम की जिन्दगी का सपना देखने वाली विद्या तो सामान्य जीवन से भी महरूम हो गई थी। विद्या को जेल में दयनीय जिन्दगी से रूबरू होना पड़ा। उसके चार बेटे- बेटी थे। वह दूर हो गई अपनी संतान से, अपने परिवार से।उसे काली कमाई का चस्का लग चुका था। यही वजह थी कि उसे बिल्कुल भी अफसोस नहीं था अपने कारनामों पर। वह खुद और इस धंधे से जुड़ी अधिकांश बातें नहीं बताना चाहती था। उसका तर्क था, सब कुछ बता देने से तो उसका यह गैर कानूनी धंधा प्रभावित होगा। उसे भविष्य में अपने कारोबार में दिक्कत आएगी। <br />
<br />
<span style="color: red;">विद्या ठोकर खाने के बाद भी नहीं संभली थी और वह तो बढऩा चाहती थी फिर उसी राह की ओर।</span>चाँद मोहम्मदhttp://www.blogger.com/profile/05619482915836049968noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-452001228846712871.post-9868535098487448952009-12-05T17:33:00.000+05:302009-12-05T17:33:05.149+05:30आखिरी पड़ाव पर अकेले<strong><span style="color: blue;">महिला कैदी-18</span></strong><br />
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<span style="color: blue;">मेरी किताब <span style="color: red;">सलाखों में सिसकती</span> सांसे से</span> <br />
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<span style="color: magenta;">उम्र के आखिरी पड़ाव पर अगर किसी को जेल की जिंदगी गुजारनी पड़े तो यह उसकी बदकिस्मती ही कही जाएगी। ऐसी ही बदकिस्मत महिला थी साठ वर्षीय शीला। पारिवारिक कलह ने उसके घर का सुख चैन छीन लिया और वह हत्यारिन करार दे दी गई। परिवार में होने वाली खटपट का ही नतीजा था कि उसने अपनी ही जेठानी का कत्ल कर दिया। इस घटना ने उसके परिवार को कहीं का नहीं छोड़ा। जेठानी दुनिया छोड़ गई, वह जेल पहुंच गई और उसके बच्चे दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हो गए।</span> <br />
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आम घरों की तरह शीला के घर में भी पहले सब कुछ सामान्य चल रहा था। शीला और उसकी जेठानी के आपस में कम बनती थी। देवरानी-जेठानी के बीच छत्तीस का यह आंकड़ा धीरे-धीरे पारिवारिक सुख-चैन को लीलने लगा। छोटी-मोटी बातों को लेकर रोज होने वाली उनके बीच की तू-तू - मैं-मैं दिनोंदिन बढ़ती गई। दोनों एक दूसरे को खटकने लगी। उस दिन तो हद ही हो गई,जब शीला ने अपनी ही जेठानी को जलाकर मार दिया। क्रोध और नफरत की आग ने उस महिला की बुद्धि को इतना कुंद कर दिया था कि उसने बिना आगे पीछे की सोचे इस क्रूर हादसे को अंजाम दे डाला। इस जुर्म के चलते वह जेल पहुंच गई।<br />
<br />
<span style="color: blue;">शीला की जिंदगी में यह दूसरा ऐसा मोड़ था जिसने उसे कहीं का नहीं छोड़ा। उसके जीवन में ऐसा ही एक भूचाल लगभग पच्चीस साल पहले आया था जब उसका पति सड़क हादसे में मारा गया। उसका पति ट्रक ड्राइवर था। ट्रक चलाने के दौरान हुए सड़क हादसे में वह चल बसा। जवानी के मोड़ पर ही शीला का पति उसका साथ छोड़ गया। चारों बच्चों की जिम्मेदारी भी उसी पर आ पड़ी। कुछ सालों तक तो सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहा, लेकिन धीरे-धीरे बिगड़े पारिवारिक माहौल ने उसे हत्यारिन बना दिया।</span><br />
<br />
एक बेटे व एक बेटी की शादी तो उसने पहले ही कर दी थी, लेकिन दो बेटे कुंवारे थे।जेल में वह अपने दोनों बेटों की शादी व अन्य घर वालों को लेकर फिक्रमन्द रहती थी। जब कभी उसे घरवालों की याद आती तो,वह उदास हो जाती और खो जाती थी अपनी बीती खुशहाल जिंदगी के पलों में।<br />
<br />
एक पोती की दादी व तीन दोहितों की नानी शीला अपनों से दूर थी। जेल में उसे अपनों की याद सताती थी। उसे एहसास था कि उसकी जेल की जिन्दगी कुछ अरसे की नहीं है। शीला को उम्र कैद की सजा हुई थी और उसे सजा भुगतते कुछ साल ही हुए थे। <span style="color: red;">उम्र की यह अखिरी मंजिल उसे किसी पहाड़ से कम नहीं लगती थी। महिला कैदियों और प्रहरियों के बीच 'मांÓ के नाम से पुकारी जाने वाली यह बुजुर्ग महिला अक्सर खोई-खोई रहती थी।</span>चाँद मोहम्मदhttp://www.blogger.com/profile/05619482915836049968noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-452001228846712871.post-33035854717588169502009-12-05T17:25:00.000+05:302009-12-05T17:25:32.486+05:30बिगड़ गई लाडो<span style="color: red;">महिला कैदी-17</span><br />
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<span style="color: cyan;"><span style="color: blue;">मेरी किताब <span style="color: red;">सलाखों में सिसकती सांसे</span> से</span> </span><br />
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<span style="color: magenta;">एक औरत ही औरत की आबरू नीलाम करने में भागीदार बन जाए तो इससे बड़ी शर्म की क्या बात होगी। ऐसी ही एक काली करतूत को अंजाम दिया पैंतालीस वर्षीय लाडो देवी ने। लाडो को अपने किए का फल मिला और वह पहुंच गई जेल। उसकी हरकत नारी मर्यादा के खिलाफ थी। उसने एक लड़की का अपहरण कर उसका बलात्कार कराने में मदद की। लाडो की बीती जिन्दगी पर नजर डालने पर लगता है कि परिस्थितियों के बिगडऩे से उसके जीवन में ऐसा मोड़ आया, जिससे वह ऐसे घिनौने अपराध को अंजाम दे बैठी।</span><br />
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लाडो को सात साल की सजा हुई । लाडो ने एक लड़की का अपहरण कर उसे अपने घर में कैद रखा। उस लड़की के साथ लाडो के ही घर में लाडो के एक जानकार ने बलात्कार किया। उसके बाद लाडो उसे जयपुर से दूसरे शहरों में ले गई। नौ दिनों तक वह उस लड़की को विभिन्न शहरों में घूमाती रही। इस दौरान भी लड़की के साथ बलात्कार किया गया और इसमें सहयोगी बनी लाडो देवी। नौ दिन बाद लड़की को बरामद किया गया। लाडो अपने गलत कारनामे के चलते जेल पहुंच गई।<br />
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आखिर पैंतालीस वर्षीय यह महिला इस रास्ते की ओर कैसे चल पड़ीï? इस बात का कुछ- कुछ खुलासा होता है लाडो की बीती जिन्दगी को जानने पर।<br />
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जयपुर जिले के ही एक गांव की रहने वाली लाडो का विवाह इसी जिले के एक कस्बे में हुआ था। शादी के शुरुआती सात-आठ साल ही खुशी- खुशी गुजरे होंगे कि उसका पति टीबी की बीमारी से चल बसा। लाडो जवानी में ही विधवा हो गई। फिर उसका दूसरा विवाह किया। विवाह के बाद लाडो का जीवन फिर से सामान्य हो गया। पिछले पति की मौत का गम वक्त के मरहम से ठीक हो गया। दूसरे पति के साथ वह खुशियां बांटने लगी। लेकिन शायद लाडो की किस्मत में लम्बे वक्त तक पति का प्यार नहीं था। उसके पति के उसकी देवरानी से अवैध सम्बन्ध हो गए। अपने पति के देवरानी से नाजायज रिश्ते ने तो मानो लाडो का सुख चैन ही छीन लिया। उसने कई बार अपने पति को समझाया व उसे सही रास्ते पर लाने की कोशिश की, लेकिन वह इसमें नाकाम रही। गलत राह पर भटके उसके पति ने लाडो को मारना- पीटना शुरू कर दिया। इन सब परिस्थितियों के चलते लाडो ससुराल छोड़कर जयपुर चली आई। वह जयपुर में मेहनत मजदूरी कर अपना गुजर बसर करने लगी। दो पतियों का साथ छूट जाने से वह बुरी तरह टूट चुकी थी। <span style="color: red;">जवानी के दौर में उसे ऐसे जख्म मिले कि सुख- चैन उससे कोसों दूर चला गया। बिगड़े पारिवारिक माहौल ने अन्तत: लाडो देवी को ही बिगाड़ कर रख दिया और उसे ऐसे अपराध के दलदल में डाल दिया, जिसके बारे में एक नारी के लिए सोचना भी शर्म की बात है।</span>चाँद मोहम्मदhttp://www.blogger.com/profile/05619482915836049968noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-452001228846712871.post-9605486535837769492009-12-03T17:42:00.000+05:302009-12-03T17:42:07.769+05:30बिखर गया परिवार<strong><span style="color: red;">महिला कैदी-16</span></strong><br />
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<span style="color: blue; font-size: large;">मेरी किताब<span style="color: red;"> सलाखों में सिसकती सांसे</span> से</span> <br />
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<span style="color: magenta;">राह भटके दो नादानों ने अपने ही परिवार को तबाही के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया। देवर- भाभी के अवैध रिश्ते का अंत हुआ भाभी की मौत के साथ। भाभी दुनिया छोड़ गई और देवर को उसके घर वाले छोड़ गए। पहुंच गए सलाखों में।</span><br />
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महिला कैदी कमली के साथ ऐसा ही वाकिया जुड़ा हुआ था। उसके छोटे बेटे और बड़े बेटे की बहू के बीच के अवैध रिश्ते ने अंतत: कमली, उसके पति व बड़े बेेटे को सलाखों में पहुंचा दिया।<br />
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पहले कमली की जिन्दगी की रेल गृहस्थी की पटरी पर सुकून से गुजर रही थी। घर में खुशियों का डेरा था। उनके अपने खेत थे। पति- पत्नी खेती कर गुजर- बसर करते थे। दो बेटे थे। आगे पढ़ाई नहीं कर पाने पर कमली ने अपने बड़े बेेटे की शादी कर दी थी। उस वक्त बड़े बेटे की उम्र लगभग २२ वर्ष थी। बहू पाकर कमली खुश थी। पांचवीं पास कमली अपनी दसवीं पास बहू लीला से काफी उम्मीदें पाले थी। वह उसे अपना सहारा मानती थी। लेकिन होनी को अलग ही मंजूर था। शादी के चंद दिनों बाद ही लीला अपने देवर राजेश में अधिक दिलचस्पी लïेने लगी। वे दोनों पहले से ही एक- दूसरे को जानते थे। दोनों नजदीक के ही एक गांव के स्कूल में साथ जो पढ़ते थे। एक स्कूल में साथ पढऩे की यादों के साथ वे एक- दूसरे के कुछ ज्यादा ही नजदीक आ गए। मामला शारीरिक सम्बन्ध तक जा पहुंचा। उन दोनों में शारीरिक सम्बन्ध का सिलसिला चलता रहा।<br />
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<span style="color: blue;">कहते हैं पाप कभी छुपता नहीं। आखिर उनके इस रिश्ते की भनक उनके घर वालों को लग ही गई और फैसला किया लीला को तलाक देने का। कमली ने लीला को पीहर छोड़ दिया। वे उसे छोडकर अपने बेटे की दूसरी शादी करना चाहते थे। दोनों के अवैध रिश्ते से निपटने का उनके पास यही एक चारा था।बार-बार पीहर छोड़ जाने के बावजूद लीला के पीहर</span> वाले फिर उसे ससुराल छोड़ जाते।<br />
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लीला की शादी हुए अभी आठ माह ही हुए थे। इस दौरान वह सिर्फ तीन बार ही ससुराल आई थी। चंद दिन रुकने के बाद उसे वापस पीहर भेज दिया जाता। कारण था लीला से पीछा छुड़वाने की मंशा। लीला का पति भी उससे नफरत करने लगा था। उसने कई बार उसको समझाया भी। लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात। चौथी बार लीला ससुराल आई हुई थी। पीहर वालों ने उसके ससुराल वालों पर दबाव डालकर जो उसे भेजा था। आने के तीन- चार दिन बाद ही एक रात को लीला के पति ने लीला को जबर्दस्ती जहर पिला दिया। उसे यही एक तरीका नजर आया उससे पीछा छुड़ाने का। शोरगुल होने पर कमली भी कमरे में पहुंची पर उसने बहू को बचाने का प्रयास नहीं किया बल्कि चुपचाप रहकर एक तरह से अपनी मौन स्वीकृति दे दी। जहर से लीला की इहलीला समाप्त हो गई और यहीं से हुई कमली, उसके पति और बड़े बेटे के बुरे दिनों की शुरुआत। लीला के पीहर वालों ने उसके पति व सास- ससुर के खिलाफ मामला दर्ज कराया। कमली, उसके पति व बड़े बेटे को सात-सात साल की सजा हो गई। <br />
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<span style="color: red;">अवैध रिश्ते की दीमक ने कमली के परिवार को चट कर दिया। वे तीनों जेल पह़ूंच गए और छोटा बेटा मारा- मारा फिरता रहा वह कभी मामा के पास रहने चला जाता , तो कभी अकेला रहता। शायद बाद में तो उसे भी पश्चाताप हुआ हो कि उसकी गलत हरकत ने उसके परिवार को कहीं का नहीं छोड़ा। बदनामी भी हुई और बुरे दिन भी देखने पड़े।</span>चाँद मोहम्मदhttp://www.blogger.com/profile/05619482915836049968noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-452001228846712871.post-46430066654372121132009-11-03T10:14:00.001+05:302011-09-15T17:56:50.125+05:30पुस्तक सलाखों में सिसकती सांसें की इंडिया टुडे में समीक्षा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgkzbDmBKNgKlPNt7Yxt8dEJVOvn7I05QSddGQj3C2Mk4Q-DO0r5soNp6xtkusy-O3NsWXRkb2SamieDxyCWSPhxcy9wk8U_Bh-MwkTqCME6AXwwb6E7GMip3g_cXYEiMgWGbeIQKT-tS13/s1600-h/book-salankho---.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span style="color: white;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgkzbDmBKNgKlPNt7Yxt8dEJVOvn7I05QSddGQj3C2Mk4Q-DO0r5soNp6xtkusy-O3NsWXRkb2SamieDxyCWSPhxcy9wk8U_Bh-MwkTqCME6AXwwb6E7GMip3g_cXYEiMgWGbeIQKT-tS13/s320/book-salankho---.jpg" vr="true" /></span></a></div><span style="color: white;"></span><br />
<b><span style="background-color: blue; color: white;">इंडिया टुडे के चार नवम्बर के अंक में मेरी पुस्तक <span style="background-color: red;">सलाखों में</span> सिसकती सांसें की समीक्षा प्रकाशित हुई है </span></b></div>चाँद मोहम्मदhttp://www.blogger.com/profile/05619482915836049968noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-452001228846712871.post-45900702860193615242009-10-13T18:04:00.001+05:302009-10-13T18:04:30.852+05:30किसका आसरा?महिला कैदी-15<br />
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मेरी किताब सलाखों में सिसकती सांसे की 15वीं कड़ी<br />
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पति के गलत कारनामे ने कमला की जिंदगी को नारकीय बना दिया। उसे अपने पति के गुनाह की सजा भुगत पड़ी। जेल मेंं ही वह मौत के नजदीक पहंूच गई।जेल पहंंूूचने केेढेेड साल बाद ही वह कैंसर की चपेट मेंं आ गई। गुनाह पचास वर्षीय कमला का नहींं उसकेे पति का था। उसी ने खेत में काम करने आई एक महिला से बलात्कार किया था। पति के साथ कमला भी फंस गई। आरोप लगा बलात्कार में मदद करने का।<br />
जेल मेंं बीमारी से जूझ रही कमला की यही ख्वाहिश थी कि उसका दम निकले तो अपने घर में। जिंदगी के बचे दिन वह अपने बच्चों के साथ गुजारना चाहती थी। इच्छा थी पति भी जल्द जेल से छूट जाए और उसके अंतिम पल में सब कुछ सामान्य हो जाए।<br />
मूलत: मन्दसौर क्षेत्र की रहने वाली कमला का ताल्लुक निम्न वर्ग से था। वह और उसका पति खेत में मजदूरी करते थे। मजदूरी से ही वे अपने तीन बेटे -बेटियों व अपना गुजारा करते थे। वे खेतों का काम ठेके पर लेकर अन्य मजदूरों से भी काम कराया करते थे। वे मन्दसौर क्षेत्र से जुड़े राजस्थान के खेतों में भी मजदूरी करते थे। एक घटना ने उनके परिवार को तबाह करकेे रख दिया।उन दिनोंं कमला और उसके पति ने एक खेत की मजदूरी का ठेका लिया था। खेत में काम करने आए श्रमिकों में लिछमा भी थी। कमला के पति की नीयत खराब हो गई। उसने मौका देखकर लिछमा को खेत में ही अपनी हवस का शिकार बना डाला। कमला इस सबसे अनजान थी। उसे बाद में पता चला जब महिला ने हल्ला मचाया। बेकसूर कमला तो कुुछ समझ भी नहींं पाई थी। भला वो क्योंं करती ऐसा घिनौना काम। कमला पर बलात्कार में मदद करने व उसके पति पर बलात्कार का मामला दर्ज हुआ। दोनों को सजा हुई।<br />
पति-पत्नी के जेल पहुंचने पर उनके तीन बेटे-बेटी बेघर हो गए। उसका बड़ा बेटा घर जंवाई बन गया।अपने छोटे भाई व बहिन को भी वह अपने ससुराल ही ले गया।<br />
इस हादसे ने कमला को कहींं का नहीं छोड़ा। सलाखों में कै द कमला बरसों तक अपने पति और बच्चोंं से मिलने तक को तरस गई। कैंसर जैसी बीमारी में भी उसका हाल जानने वाला अपना कोई नहीं था। न उसके पीहर में कोई अपना था और न ससुराल में। पति खुद जेल में कैद थे और बच्चे नामसझ थे। वे तो खुद सहारे के मोहताज थे। <br />
कैंसर पीडि़त इस महिला कैदी का जेल में इलाज चला। जेल मेंं उसके जहन में कई सवाल उभरते थे। वह सोचती-जेल से छूटने पर भी तो वह चैन की जिंदगी नहीं गुजार सकेगी। कौन करेगा उसकी देखभाल? कैसे होगा उसका इलाज? उसका पति तो बन्द ही है। कौन बनेगा उस बेसहारा का सहारा? <br />
एक छोटी सी घटना ने कमला के परिवार को कहीं का नहीं छोड़ा। कमला को ऐसे मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया जिसके बारे में शायद उसने सपने में भी नहीं सोचा होगा।चाँद मोहम्मदhttp://www.blogger.com/profile/05619482915836049968noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-452001228846712871.post-90807923655162028182009-10-13T17:58:00.001+05:302009-10-13T17:58:17.616+05:30रिश्तों में दरारमहिला कैदी-14<br />
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मेरी किताब सलाखों में सिसकती सांसे की चोदहवीं कड़ी<br />
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पति की प्रताडऩा ने परमा को कातिल बना दिया। वह नहीं चाहती थी अपने पति को परलोक पहुंचाना, लेकिन उसके सब्र का बांध टूट चुका था। आए दिन पियक्कड़ पति के लात घूसे झेलना अब उसकी वश की बात नहीं रही थी। परेशान होकर परमा ने पति का कत्ल कर दिया। इसमें सहभागी बना उसका बड़ा बेटा व बेटे का दोस्त।<br />
दिल दहल जाता है यह सुनकर कि परमेश्वर का दर्जा प्राप्त पति की हत्या पत्नी ने कर दी? आखिर पति ने परिस्थितियां ही ऐसी पैदा कर दी थी। परमा शादी के १९ साल तक इन परिस्थितियों और विपरीत हालात से जूझती रही, लेकिन फिर एक दिन बोखलाई परमा को पति से छुटकारे का एक ही रास्ता नजर आया और वह था उसे मौत की नींद सुलाना।<br />
इस हादसे ने परमा के परिवार को तबाह कर दिया। परमा व उसका बड़ा बेटा जेल पहुंच गए और छोटा बेटा दर-दर की ठोकरें खाता फिर रहा है। इस हादसे का चश्मदीद गवाह था परमा का छोटा बेटा व उसका दोस्त। अपने छोटे बेटे की गवाही से ही परमा जेल में पहुंची।<br />
मूलत: दिल्ली की रहने वाली परमा का विवाह जयपुर में हुआ था। पति फर्नीचर का काम करते थे। घर का माहौल ठीक था। नववधू बनकर आई परमा और उसका पति ही जयपुर में रहते थे। अन्य ससुराल वाले दूसरे शहर में रहते थे। परमा के पति रणजीत की शराब पीने की लत थी। परमा ने सोचा शायद वे शराब छोड़ देंगे। उसने अपने पति से शराब छोडऩे ने लिए कई बार कहा लेकिन वह नहीं माना। और फिर शादी के चंद महीनों बाद ही परमा पियक्कड़ पति की प्रताडऩा का शिकार होने लगी। फिर भी परमा को उम्मीद थी कि वक्त के साथ-साथ सब सुधर जाएगा। इस बीच परमा के दो लड़के हुए। परमा चुपचाप अपने पति की मार झेलती रही। जब- जब उसने पति का विरोध किया, उसे प्रताडऩा दुगनी ही झेलनी पड़ी। परमा आस लगाए बैठी थी कि बेटों के बड़े होने पर शायद उसका पति लाइन पर आ जाए। इसी उम्मीद से वह झेलती रही अपने पति की प्रताडऩा।<br />
एक अरसे तक पति की प्रताडऩा झेलत झेलते परमा परेेशान हो चुकी थी। एक लम्बे अरसे से वह घुटन भरी जिन्दगी जी रही थी। अन्य ससुराल जन या पीहर वाले जयपुर में रहते नहीं थे, जिनके जरिए वह अपने पति को सही दिशा दिखा सके या जिनको अपनी पीड़ा बता सके। परमा का बड़ा बेटा भी पिता की हरकतों से परेशान था। आए दिन मां की पिटाई भी उसे बर्दाश्त नहीं थी।<br />
परमा के दोनों बेटे किशोर हो चुके थे। पिटाई से पीडि़त परमा को चहुं ओर अंधकार ही नजर आने लगा और फिर एक दिन परमा ने पति से हमेशा के लिए पीछा छुड़ाने का मानस बना लिया। उसने इसमें शामिल किया अपने बेटे व बेटे के दोस्त को। परमा ने पति को जहरीला पदार्थ मिलाकर शराब पिला दी। परमा का बड़ा बेटा भी इस साजिश में शामिल था। और फिर उस रात परमा का पति रणजीत चिर निद्रा में सो गया। परमा का छोटा बेटा यह सब देख रहा था। पिता की मौत उसे बर्दाश्त नहीं हुई और फिर वह झगड़ पड़ा अपनी मां व भाई से। छोटे बेटे ने अपनी मां व भाई के खिलाफ गवाही दी।<br />
बेटे की गवाही से परमा व उसके बड़े बेटे को जेल हो गई। पति की गलत आदतों से परमा तो कहीं की नहीं रही। खुद व बेटा जेल पहुंच गए और छोटा बेटा लावारिश हो गया। दोनों बेटों की पढ़ाई छूट गई। शराब पीने व पत्नी को पीटने की गलत आदत ने इस परिवार को तबाह कर दिया। पत्नी को पति का कातिल बना दिया और बेटे को बाप का। पिता की हत्या से छोटा बेटा अपनी खास मां और भाई से ही नफरत करने लगा। पति की गलत आदत और बिना सोचे गलत राह की ओर बढ़ते चले जाने का ही नतीजा था कि खास रिश्तों में ही दरारें पड़ गईं।चाँद मोहम्मदhttp://www.blogger.com/profile/05619482915836049968noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-452001228846712871.post-38285756448909679012009-10-13T17:53:00.001+05:302009-10-13T17:53:22.469+05:30कलह का कहरमेरी किताब सलाखों में सिसकती सांसे की तेरहवीं कड़ी<br />
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पारिवारिक कलह परिवार के सुख- चैन को लील लेती है। तू- तू मैं- मैं से शुरू हुआ कलह का सफर कई बार भयानक अंजाम को पहुंचता है। जोहरा के साथ भी ऐसा ही वाकिया जुड़ा हुआ है। ननद- भौजाई की कलह ने भौजाई को परलोक पहुंचा दिया और ननद को सलाखों में। जोहरा को अपनी भौजाई को जलाकर मारने के आरोप में उम्रकैद की सजा हुई।<br />
छब्बीस वर्षीय जोहरा ने अपनी गलत हरकतों से न केवल पीहर का सुख चैन छीन लिया बल्कि ससुराल की अपनी गृहस्थी को भी पटरी से उतार लिया। जोहरा के गलत रास्ते पर ही चलने का नतीजा था कि कई साल पहले पति ने भी उसे तलाक दे दिया था।<br />
पति के छोड़ देने के बाद जोहरा अपने पीहर में रहती थी। उसके तीन भाई थे। तीसरे नम्बर के भाई की शादी हुए लगभग साढ़े चार साल ही हुए थे। इस छोटे भाई की पत्नी और जोहरा में शुरू से ही कम बनती थी। दरअसल जोहरा की आदतें व चाल चलन ठीक नहीं था। इसी सबके चलते जोहरा की भौजाई उससे चिढ़ती थी। दोनों में बात- बात पर तू- तू मैं- मैं होना और झगड़ा आम बात थी। वह अपने भाइयों को भी भौजाई के बारे में उल्टी- सीधी बातें बताती थी। जोहरा की इन सब आदतों की शिकार उसकी भौजाई को होना पड़ता। उसके अपने जेठ भी उसे लताड़ते और पति भी उसकी पिटाई करता। जोहरा अक्सर अपने भाई को सिखा- सिखाकर भौजाई की पिटवाई कराती रहती थी। उधर भौजाई को भी जोहरा फूटी आंख नहीं सुहाती थी। ननद से न बनने का एक कारण ननद का बदचलन होना था। दरअसल जोहरा के अपने बुआ के लड़के से ही नाजायज सम्बन्ध थे। बुआ के लड़के से गलत सम्बन्ध के चलते ही तो पति ने जोहरा को छोड़ दिया था। फिर भी जोहरा नहीं संभली। जारी रखा गुमराही की ओर कदम बढ़ाना। पीहर में उनका मकान और बुआ का मकान सटा हुआ था और इसी कारण उनके अवैध रिश्ते आगे बढ़ते गए। अवैध रिश्ते ने उसके पति के रिश्ते को छुड़वा दिया। जोहरा अपने ही मासूम बेटे से दूर हो गई। लेकिन नहीं दूर हुई तो अपने प्रेमी से।<br />
दिशाहीन जोहरा अपनी भौजाई को भी अपने संबंधों में रोड़ा समझती थी। उधर भौजाई भी जोहरा और जोहरा के बहकाने से अन्य ससुरालजनों की प्रताडऩा से पीडि़त थी। जोहरा के प्रेमी का घर आना- जाना भी उसे नहीं सुहाता था।<br />
शादी के दो साल बाद ही भौजाई ससुराल के माहौल से तंग आ चुकी थी। खास तौर से अपनी ननद से। और फिर एक दिन भोजाई ने तेल छिड़ककर खुद को जला लिया। मरने से पहले बयान दिया कि उसको उसकी ननद जोहरा, जोहरा के प्रेमी, उसके जेठ ने जलाकर मार दिया। जोहरा की हर बात पर यकीन करके उसे प्रताडि़त करने वाले जेठ का भी भौजाई ने नम्बर ले लिया और उस पर भी इस साजिश में शामिल होने का आरोप लगा दिया।<br />
इसी के चलते जोहरा पहुंच गई सलाखों में। जोहरा के प्रेमी और बड़े जेठ को भी उम्रकैद हो गई। जोहरा की गलत हरकतों ने उसे कहीं का नहीं छोड़ा। पति, बेटा व ससुराल तो पहले ही छूट गया था, अब पीहर भी छूट गया। ठिकाना बन गया जेल।चाँद मोहम्मदhttp://www.blogger.com/profile/05619482915836049968noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-452001228846712871.post-24168242407450886992009-08-28T16:57:00.000+05:302009-08-28T17:02:34.765+05:30<p><span class=""> <strong><span style="color:#ff0000;">महिला कैदी-12</span></strong></span></p><p><span style="color:#3366ff;"><strong><em>मेरी किताब <span style="color:#ff0000;">सलाखों में सिसकती सांसे</span> की बारहवी कड़ी</em></strong></span></p><p><span style="font-size:180%;"><strong><span style="color:#33cc00;"><span class="">नाजायज</span> होने की सजा</span></strong></span> </p><p><span style="color:#ff0000;">छह माह के मासूम छोटू का कोई गुनाह नहीं था। वह तो मां की गोद में खुद को महफूज समझता था। छोटू हंसता- खेलता और फिर मां के आंचल में दुबककर चैन की नींद सो जाता। वह नन्ही जान भला क्या जान पाता कि चैन की नींद सुलाने वाली उसकी खास मां ही उसे एक दिन मौत की नींद सुला देगी। ऐसा ही हुआ।</span> सीता ने अपने ही छह माह के जिगर के टुकड़े को जहर देकर मार डाला। जहर तो सीता और उसके प्रेमी ने भी खाया था अपनी इहलीला खत्म करने को। लेकिन वे दोनों बच गए और नïन्हा छोटू हमेशा के लिए दुनिया से रुखसत हो गया। सीता और उसके प्रेमी को उम्रकैद हो गई एक मासूम की जान लेने के आरोप में। यह दास्तान है पैंतीस वर्षीय सीता की। अलवर की सीता की जिन्दगी शादी के बाद अच्छी खासी चल रही थी। पति सोहन ट्रक ड्राइवर था। वह अपनी कमाई से अपने परिवार वालों का पेट पाल रहा था। इस बीच सीता के एक लड़का व एक लड़की हुई। शादी के <span style="color:#3333ff;">लगभग सात वर्ष बाद सीता राह भटक गई। वह अपने पड़ोस में रहने वाले अविवाहित युवक मंगल को चाहने लगी। दोनों में शारीरिक सम्बन्ध हो गए। सीता ने अपने पति को अंधेरे में रखा और उससे बेवफाई की। दोनों के बीच सम्बन्ध बढ़ते गए और वे चल पड़े दिशाहीन राह की ओर। दोनों के नाजायज सम्बन्ध का नतीजा निकला नाजायज सन्तान के रूप में।</span> सीता के मंगल से अवैध सम्बन्ध के चलते छोटू पैदा हुआ। सीता का पति सोहन उनके इन अवैध रिश्तों से अनजान था। वह तो कई- कई दिनों तक घर से दूर रहकर अपनी पत्नी व बच्चों के गुजारे के लिए ट्रक ड्राइवरी करता था। उसकी पत्नी पीछे से क्या गुल खिला रही है, वह नहीं जानता था। सीता व मंगल का अवैध सम्बन्ध लगभग पांच- छह साल तक चला, लेकिन एक दिन दोनों पकड़े गए। फिर तो सोहन को यह भी पता चल गया कि छोटू उसका बेटा नहीं है। वह अवैध सन्तान है। सोहन ने यह सब जानकर भी होश से काम लिया। उसने अपनी पत्नी सीता को समझाया कि वह मंगल से अपने सम्बन्ध तोड़ लें, वह उसको व बच्चे को अपना लेगा। अवैध सन्तान को भी वह अपने ही बच्चे का दर्जा देगा। लेकिन गलत राह की ओर आगे तक बढ़ चुकी सीता ने अपने पति की एक न सुनी। उसने मंगल से रिश्ते बनाए रखे। उसने खुल्लमखुल्ला इस रिश्ते को स्वीकारा और कहा कि वह मंगल से सम्बन्ध नहीं तोड़ेगी। और फिर एक दिन सीता और मंगल ने साथ न रह पाने पर एक साथ मरने का फैसला कर लिया। प्यार में पागल दोनों ने आगे- पीछे की कुछ न सोची। न अपने बारे में सोचा और न अपनों के बारे में। दोनों ने अपने साथ ही छह माह के छोटू को भी मारने का फैसला कर लिया। उस छोटू को जो अपनी मां के अलावा दुनिया के हर रिश्ते से अनजान था। <span style="color:#ff0000;">सीता और मंगल ने जहर खा लिया और उन्होंने छह माह के छोटू को भी जहर खिला दिया। जहर के असर से छोटू की जान चली गई। उधर सीता और मंगल को अस्पताल में भर्ती कराया गया। आठ दिन अस्पताल में भर्ती रहने के बाद दोनों बच गए लेकिन नन्हा छोटू तो पहले ही दुनिया को अलविदा कह गया। छोटू को मारने के आरोप में सीता और मंगल को उम्र कैद हो गई। सीता की गलत हरकत ने न केवल एक मासूम की जान ले ली बल्कि पूरे परिवार को अंधकार की ओर धकेल दिया।</span> सीता के बेटे व बेटी के भविष्य पर भी प्रश्न चिह्नï लग गया। इस सबके बाद भी दुखद पहलू यह था कि सीता फिर भी आगे मंगल के साथ ही रहने को कहती थी। सीता का पति सोहन इतना सबकुछ होने पर भी उसे अपनाने व उसकी मदद को तैयार था। उससे मिलने वह जेल भी जाता था, लेकिन दिग्भ्रमित कुंद बुद्धि की सीता तो आगे भी गलत राह की ओर चलना चाहती थी। </p>चाँद मोहम्मदhttp://www.blogger.com/profile/05619482915836049968noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-452001228846712871.post-45437326970394498802009-08-28T16:51:00.000+05:302009-08-28T16:56:57.397+05:30<p><strong><span style="color:#ff0000;">महिला कैदी-<span class="">11</span></span></strong></p><p><span style="color:#3366ff;"><strong><em>मेरी किताब <span style="color:#ff0000;">सलाखों में सिसकती सांसे</span> की ग्यारहवी कड़ी</em></strong></span></p><p><strong><span style="font-size:180%;color:#3333ff;">जेल बना घर </span></strong></p><p><span style="color:#ff0000;"><span class="">सास</span>-बहू का रिश्ता बहुत नाजुक है। कई बार इस रिश्ते में आई दरार परिवार को तबाही के कगार पर लाकर खड़ा कर देती है। पचास वर्षीय लच्छो देवी का परिवार भी इसी का उदाहरण है। सास की लगातार उपेक्षा और प्रताडऩा ने स्वस्थ बहू को बीमार बना दिया। बहू लम्बे वक्त तक बीमार रही। फिर एक दिन बहू तो दुनिया से रुखसत हो गई, लेकिन उसकी सास, ससुर व पति की दुनिया खराब हो गई</span>। वे तीनों बहू की हत्या के जुर्म में सलाखों में पहुंच गए और उनके बच्चे सड़क पर आ गए। बच्चों की परवरिश व भविष्य पर प्रश्नचिह्नï लग गया। आम घरों की तरह लच्छो देवी के घर में भी पहले सब कुछ सामान्य चल रहा था। पति चुनाई का काम करते थे। घर में खुशहाली थी। लच्छो ने अपने बड़े बेटी की शादी की। शादी के कुछ वक्त बाद ही लच्छो और उसकी नई नवेली बहू बसंती में अनबन होने लगी। <span style="color:#3333ff;">लच्छो ने अपनी बहू की अक्सर उपेक्षा की। उसे विभिन्न तरीकों से प्रताडि़त किया। ससुराल के विपरीत हालात ने बसंती को बीमार बना दिया। बीमार बसंती का साथ न तो पति ने दिया और न ही ससुर ने। बसंती के हमसफर ने उसे अपने हाल पर छोड़ दिया और अपनी मां की गलत हरकतों पर खामोश रहा।</span> एक दिन बसंती हमेशा के लिए दुनिया छोड़ गई। बसंती की सास, ससुर व पति पर आरोप लगा उसे जान से मारने का। बसंती के पीहर वालों ने उसकी सास, ससुर व पति के खिलाफ दहेज हत्या का आरोप लगाया। बार-बार टटोलने पर भी लच्छो ने यह स्वीकार नहीं किया कि उन्होंने ही इस गुनाह को अंजाम दिया। उसका कहना था कि अक्सर बीमार रहने की वजह से वह काफी कमजोर हो चुकी थी और इसी के चलते वह एक दिन चल बसी। उसके चेहरे से यह भाव तो साफ झलका कि स्वस्थ बहू को खटिया तक पहुंचाने की गुनाहगार तो वो रही-रही और इसी गुनाह में भागीदार बना लिया अपने पति व बेटे को। लच्छो और उसके बेटे को दस-दस साल की सजा हुई। इस हादसे ने तो लच्छो देवी को कहीं का नहीं छोड़ा। <span style="color:#ff0000;">उसका कमाऊ पति व बेटा भी जेल पहुंच गया और घर पर छूट गए तीन नाबालिग बच्चे। उन बच्चों का पीछे कोई धणी-धोरी नहीं रहा। बच्चों की बात छेडऩे पर उसकी आंखों से आंसू टपकने लगते थे। वह उनकी देखभाल और भविष्य को लेकर गमगीन हो जाती थी। कहती थी, अब तो उनकी पढ़ाई भी छूट जाएगी और उनकी देखभाल कैसे होगी पता नहीं। लच्छो के गलत कारनामों ने उसके परिवार को कहीं का नहीं छोड़ा। उसका, पति और बेटे का घर जेल हो गया और बच्चे बेघर हो गए।</span></p>चाँद मोहम्मदhttp://www.blogger.com/profile/05619482915836049968noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-452001228846712871.post-54072485413970744212009-08-28T16:41:00.000+05:302009-08-28T16:51:31.804+05:30<span style="color:#ff0000;"><strong><span class="">महिला कैदी-1</span>0</strong></span><br /><strong><em><span style="color:#3333ff;">मेरी किताब <span style="color:#ff0000;">सलाखों में सिसकती सांसे</span> की दसवीं कड़ी</span></em></strong><br /><span class=""></span><br /><span style="font-size:180%;"><strong><span style="color:#33cc00;">बेघर हुए बच्चे</span></strong></span><br /> <br /><span class=""> <span style="color:#ff0000;"> बच्चों का जिक्र</span></span><span style="color:#ff0000;"> होते ही सुप्यारी की आंखों से आंसू टपकने लगते थे।जेल में वह अपने चारों बेटे-बेटियों के बारे में सोचकर अक्सर उदास रहती थी। उसने तो सोचा भी नहीं था कि उसकी जिन्दगी में कभी ऐसा मुकाम आएगा कि उनके बच्चों पर न बाप का साया होगा न मां का। मां-बाप के जिन्दा रहते ही उसके बेटे-बेटी अनाथों सी जिन्दगी गुजारेंगे। एक हादसे से सुप्यारी के जीवन में ऐसा ही मोड़ आया।</span> ए$क व्यक्ति की हत्या के मामले में उसको और उसके पति को उम्रकैद हो गई। हालांकि वे उस व्यक्ति [श्रवण] को मारना नहीं चाहते थे। उनका पूरा परिवार श्रवण की गलत हरकतों से परेशान था। आए दिन शराब पीकर श्रवण सुप्यारी के परिजनों के साथ मारपीट कर देता था। पूरा परिवार उससे डरा व सहमा हुआ था। आखिर श्रवण ताकतवर जो था। उसके भाई व रिश्तेदार जो बड़ी संख्या में थे। श्रवण तो अक्सर शराब के नशे में रहता और उसके घर वाले भी श्रवण की गलत हरकतों का ही समर्थन करते। श्रवण की गलत हरकतों के चलते ही सुप्यारी के परिवार और श्रवण के परिजनों में रंजिश चली आ रही थी। शराब के नशे में धुत श्रवण ने एक दिन तो सुप्यारी के घर में आग भी लगा दी थी। जैसे-तैसे लोगों ने आग पर काबू पाया। दोनों परिवारों में रंजिश के बाद तो श्रवण की गलत हरकतें बढ़ती गईं। नशे में <span style="color:#3333ff;">सुप्यारी के घर के सामने गाली-गलौच करना और कभी-कभी तो नंगा हो जाना श्रवण की गलत हरकतों में शामिल था। उस दिन भी श्रवण नशे में था। बाहर से उसके दो मिलने वाले भी उसके पास आए हुए थे। तीनों ने जमकर शराब पी थी।</span> शराब के नशे में धुत तीनों ही व्यक्ति आपस में झगडऩे लगे। फिर वही आदत के मुताबिक श्रवण का निशाना बना सुप्यारी का परिवार। आए दिन गाली-गलौच व मारपीट से परेशान सुप्यारी, उसके पति, चचेर ससुर व देवर ने मिलकर उस दिन श्रवण पर ताबड़तोड़ वार कर दिए। श्रवण की गलत हरकतों से वे बहुत परेशान हो गए थे। उन्होंने उसको जमकर पीटा। श्रवण पंद्रह दिनों तक हॉस्पीटल में जिन्दगी और मौत के बीच जूझता रहा और फिर पंद्रह दिन बाद उसकी मृत्यु हो गई। श्रवण की हत्या के मामले में सुप्यारी, उसके पति, चाची सास, चचेर ससुर सहित सात जनों को उम्रकैद हो गई। इस हादसे ने सुप्यारी को कहीं का नहीं छोड़ा। पति के साथ जेल पहुंची पचास वर्षीय सुप्यारी के बच्चों की पढ़ाई छूट गई। उसके बच्चे खाने-पीने के भी मोहताज हो गए।पीछें सुप्यारी की बूढ़ी सास की देखभाल करने वाला भी कोई नहीं रहा। बच्चों व सास का जिक्र करते ही सुप्यारी सुबकने लगती थी। उसका बड़ा बेटा पंद्रह साल का और छोटा बेटा दस साल का ही तो था। उसके दो बेटियां भी थीं। मां-बाप को जेल होने पर वे कभी अपनी मौसी के पास चले जाते , तो कभी अपनी नानी के पास। <span style="color:#ff0000;">काफी समय तक उसने अपने लाडलों की शक्ल तक नहीं देखी थी। परिवार में पीछे उनकी देखभाल करने वाला भी नहीं था बच्चों की चिंता में उसे तो हर दिन पहाड़ सा लगता था। फिर सजा भी उम्रकेद थी। सुप्यारी को तो अपने बच्चों का भविष्य अंधकार में नजर आ रहा था। जेल में वह अक्सर खोई-खोई रहती थी। </span>चाँद मोहम्मदhttp://www.blogger.com/profile/05619482915836049968noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-452001228846712871.post-82446764769937658482009-08-25T17:07:00.000+05:302009-08-28T17:22:04.946+05:30<strong><span style="color:#ff0000;">महिला कैदी-9</span></strong><br /><em><span style="color:#3333ff;">मेरी किताब <span style="color:#ff0000;">सलाखों में सिसकती सांसे</span> की नोवीं कड़ी</span></em><br /><span style="font-size:180%;color:#ff0000;"><span class=""></span></span><br /><span style="font-size:180%;color:#ff0000;">हमसफर का कत्ल</span><br /><span class=""><span class=""><span style="color:#3333ff;">तीस</span></span><span style="color:#3333ff;"> वर्षीय</span></span><span style="color:#3333ff;"> बसन्ती अपने तीनों बच्चों से दूर हो गई। न वह घर की रही न घाट की। ससुराल भी छूट गया और पीहर वालों ने भी उससे पल्ला झाड़ लिया। उसके अपने बच्चे भी उससे नफरत करने लगे। बसन्ती ने अपने ही हाथों अपने परिवार को तबाह कर लिया।</span> बसन्ती ने दो जनों के साथ मिलकर अपने ही पति का कत्ल कर दिया। वैवाहिक जीवन के लगभग साढ़े आठ साल बाद उसने इस क्रूर हादसे को अंजाम दिया। पति को उसने इसलिए नहीं मारा कि वह उससे नफरत करती थी बल्कि इसलिए कि वह किसी और में दिलचस्पी लेने लगी थी। पति उसके लिए रोड़ा बना था। मूलत: पंजाब की रहने वाली बसन्ती की शादी हनुमानगढ़ जिले में हुई थी। अच्छा खासा ससुराल था। जमीन थी, जहां नहरों के पानी से सिंचाई होती थी। पति खेती का काम करते थे। वह भी अपने खेत में पति का हाथ बंटाती थी। उसके पांच जेठ थे। सब मिलजुलकर रहते थे। शादी के डेढ़ साल बाद उसके लड़का हुआ। और फिर वह एक के बाद एक तीन लड़कों की मां बनी। पति- पत्नी के बीच ठीक बनती थी। उनका गृहस्थ जीवन खुशहाल था। शादी के लगभग सात साल बाद बसन्ती दिग्भ्रमित हो गई। वह अपने पड़ोस में रहने वाले भंवर के जाल में फंस गई। भंवर बसन्ती के पति राधेश्याम का साथी था। वह अक्सर राधेश्याम के साथ उसके घर आता- जाता था। पड़ोस में होने और अक्सर घर आने जाने की वजह से दोनों की नजदीकियां बढ़ती गईं। बसन्ती और भंवर के बीच शारीरिक सम्बन्ध हो गए। मौका देखकर दोनों अपनी हवस मिटाने लगे। इस बीच बसन्ती को एक और दूसरा व्यक्ति अपने साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाने को मजबूर करने लगा। सम्बन्ध बनाने से इनकार करने पर उसने बसन्ती को उसके व भंवर के अवैध रिश्ते की जानकारी उसके पति राधेश्याम को देने की धमकी दी। ऐसा ही हुआ और उसने राधेश्याम को बसन्ती व भंवर के नाजायज रिश्ते की बात बता दी। पत्नी की बेवफाई से तिलमिलाए राधेश्याम ने बसन्ती के साथ मारपीट की और भंवर से दूर रहने का दबाव डाला। बसन्ती को भंवर का साथ छोडऩा गंवारा नहीं था। अब तो उसे अपना पति उनके संबंधों में रोड़ा नजर आने लगा। राधेश्याम की शराब पीने की कमजोरी को बसंती ने हथियार बनाया। एक दिन मौका देखकर बसन्ती ने शराब में जहर मिलाकर अपने पति को पिला दिया। उसमें बसन्ती का साथ दिया उसके प्रेमी भंवर और भंवर के एक दोस्त ने। शराब पीने से राधेश्याम की मौत हो गई। बसन्ती के बड़े बेटे को मां पर शक हो गया था। दरअसल उसने अपनी मां व भंवर की बातें सुन ली थी। उसने अपने ताउ को यह बातें बताई। और फिर बसन्ती, उसका प्रेमी भंवर और भंवर का दोस्त पहुंच गए सलाखों में। बसन्ती के बेटे ने मां के खिलाफ गवाही दी और अपनी मां की काली करतूतों के बारे में बताया। इस मामले में तीनों को उम्रकैद हो गई। बसन्ती तो कहीं की नहीं रही। उसके तीनों बच्चे छूट गए। जेल पहुंचने के बाद तो वह अपने बच्चों का मुंह देखने के लिए भी तरस गई। उसके ससुराल व पीहर वालों ने भी उससे कन्नी काट ली। तीन बच्चों के बाद प्रेमजाल में फंसी बसन्ती तो खुद प्यार, अपनत्व व हमदर्दी की मोहताज बन गई थी।वह नहीं जानती थी जेल से छूटने पर उसकी जिंदगी किस ओर रुख करेगी।चाँद मोहम्मदhttp://www.blogger.com/profile/05619482915836049968noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-452001228846712871.post-36358327872654539232009-08-25T17:00:00.000+05:302009-08-25T17:07:06.913+05:30<strong><span style="color:#3333ff;">महिला कैदी-8</span></strong><br /><em> मेरी किताब <span style="color:#3366ff;">सलाखों में सिसकती सांसे</span> की आठवीं कड़ी</em><br /><span style="font-size:180%;"><span style="color:#ff0000;"><span class=""></span></span></span><br /><span style="font-size:180%;"><span style="color:#ff0000;"> अवैध संबंधों ने की जिंदगी तबाह</span></span><br /><br /><span class=""> <span style="color:#3333ff;">खास रिश्तों</span></span><span style="color:#3333ff;"> में ही अगर अवैध शारीरिक सम्बन्ध होने लगे तो जाहिर है दुष्परिणाम खतरनाक ही होते हैं। शान्ति से जुड़ा वाकिया तो यही दर्शाता है। शान्ति के अपने खास चाचा से अवैध सम्बन्ध हो गए। उनके इन संबंधों का ही नतीजा निकला कि शान्ति ने चाचा के साथ मिलकर अपनी ही चाची का कत्ल कर डाला।</span> शान्ति की इस हरकत ने पूरे परिवार को अशान्ति की ओर धकेल दिया। शादीशुदा शान्ति का ठिकाना जेल हो गया। उसे उम्रकैद की सजा हो गई। नागौर जिले के एक गांव की शान्ति के माता- पिता खेती करते थे। उसके पिता के तीन भाई थे। वे भी खेती ही करते थे। अपने चाचा वगैरह के सामने ही पली बढ़ी शान्ति का उम्र में बड़े अपने ही एक चाचा सोहन से शारीरिक सम्बन्ध हो गए। <span style="color:#3333ff;">दोनों ने अपने रिश्ते और उसकी गरिमा को भुला दिया। नजदीकी रिश्ता होने के चलते उन पर किसी को शक नहीं हुआ और वे गलत राह की ओर बढ़ते रहे। सोहन भी अपनी पत्नी की उपेक्षा करने लगा और अपनी भतीजी में अधिक रुचि लेने लगा। दोनों के नाजायज रिश्ते का ही नतीजा रहा कि सोहन ने अपनी पत्नी को तलाक दे दिया।</span> हालांकि चाचा- भतीजी का यह अवैध सम्बन्ध पहले दबा रहा। उधर शान्ति की भी शादी कर दी गई। वह ससुराल भी जाने लगी। शादी के बाद भी उसने अपने चाचा से सम्बन्ध बनाए रखे। उसने अपने पति को भी अंधेरे में रखा। उधर अपनी पत्नी को छोड़े सोहन को कुछ बरस हो गए थे। उसे अपने पति के साथ उसकी भतीजी से सम्बन्ध का पता चल गया था।सोहन की पत्नी अपने पति की जमीन में हिस्सा भी चाहती थी। यही वजह थी कि तलाक के छह- सात साल बाद भी वह ससुराल के सम्बन्ध में पूरी जानकारी रखे हुए थी। इस बीच सोहन की पत्नी अपने ससुराल आई हुई थी। उसे सोहन और उसकी भतीजी शान्ति के संबंधों का पता पहले से था। उधर अपने नाजायज सम्बन्धों का पता लग जाने पर सोहन और शान्ति बुरी तरह बौखला गए थे। उन्हें अपनी बदनामी का भी डर था। दूसरी तरफ सोहन यह भी नहीं चाहता था कि उसकी दो सौ बीघा जमीन मे उसकी पत्नी को किसी प्रकार का हिस्सा मिले। इसी के चलते सोहन ने शान्ति के साथ मिलकर अपनी पत्नी को जलाकर मार डाला। सोहन की पत्नी तो दुनिया छोड़ गई लेकिन सोहन और शान्ति की दुनिया खराब हो गई। दोनों को हत्या के जुर्म में उम्र कैद हो गई और दोनों का ठिकाना बन गई जेल की कोठरी। राह भटकी यह युवती अपने कारनामों से कहीं की नहीं रही। <span style="color:#3333ff;">हत्या की घटना शान्ति की शादी के छह साल बाद की है। न उसके कोई सन्तान है और ना ही उसके चाचा के। दोनों की गलत हरकत ने दोनों को कठघरे में पहुंचा दिया। ससुराल से उपेक्षित तीस वर्षीय शान्ति का लम्बा ठिकाना जेल ही बन गया। जेल से छूटने पर उसकी जिन्दगी किस ओर रुख करेगी, वह खुद नहीं जानती थी। उसके बहके कदमों ने उसे कहीं का नहीं छोड़ा।<br /></span>चाँद मोहम्मदhttp://www.blogger.com/profile/05619482915836049968noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-452001228846712871.post-62547807849143897622009-08-25T16:52:00.000+05:302009-08-25T17:00:06.533+05:30<p><strong><span style="color:#ff0000;">महिला कैदी-7</span></strong></p><p><span style="color:#3366ff;"><em>मेरी किताब <span style="color:#ff0000;">सलाखों में सिसकती सांसे</span> की सातवीं कड़ी</em></span> </p><p><span style="font-size:180%;color:#ff0000;"><strong>सुख-चैन कौसों दूर</strong></span> </p><p><span class=""> <span style="color:#3333ff;">दौलतमन्द</span></span><span style="color:#3333ff;"> बनने की चाह ने सुगना को पेशेवर मुजरिम बना दिया। हालांकि उसने अपने काले कारनामों से लाखों की सम्पत्ति जुटाई लेकिन फिर भी सुख- चैन उससे कोसों दूर रहा। शातिर चोर के रूप में पहचान बना चुकी सुगना की जिंदगी बीच-बीच में अपनी आलीशान कोठी में नहीं बल्कि जेल की कोठरी में गुजरी है। उसके गुनाह की सजा उसके दो मासूम बच्चोंं को भी भुगतनी पड़ी जो छोटे होने से अपनी मां के साथ जेल में रहने को मजबूर थे।</span> झुंझुनूं जिले के एक कस्बे में ब्याही सुगना के पति ने जोधपुर में एक रेस्टोरेंट खोल रखा था। वह भी जोधपुर में ही पति के साथ रहती थी। रेस्टोरेंट की आय उन्हें उनकी अपेक्षा के अनुरूप नहीं लगी। उन्होंने लखपति बनने का शॉर्टकट अपनाने की सोची और चल पड़े गलत राह की ओर। सुगना को चोरी की राह दिखाने का गुनाह उसके पति किशन ने किया । किशन ने अपनी पत्नी को न केवल चोरी और लूट के लिए प्रेरित किया बल्कि कई घटनाएं उन्होंने मिलकर अंजाम दी। शुरुआती चोरी की घटनाएं अंजाम दी किशन ने और इल्जाम ले लिया सुगना ने ताकि किशन पुलिस की पकड से बचकऱ़ बेरोक टोक अपनी करतूतों को अंजाम देता रहे। फिर तो सुगना का भी दिल खुल गया और वो भी बढ़ चली दिशाहीन रास्ते की ओर। वह खुश थी कि ये पैसा उसकी जिंदगी को खुशियों से भरपूर बना देगा। शुरुआती वारदातों में तो पति- पत्नी को कामयाबी मिली, लेकिन फिर सुगना पुलिस की निगाह में आ गई और उसकी पहचान एक शातिर चोर केे रूप मेंं बन गई। चोरी के एक मामले में उसे सात साल की सजा सुनाई गई। <span style="color:#3366ff;">सुगना का चोरी का अलग ढंग था। वह नशीला पदार्थ खिलाकर यात्रियों का सामान चुराती थी। अक्सर वह यह वारदात ट्रेन में ही करती थी। महिला होने का फायदा उसे मिलता और वह यात्री के रूप में अपनी पहचान बताकर अन्य यात्रियों से शीघ्र मेलजोल कर लेती। मेलजोल के दौरान ही वह यात्रियों को चाय या खाने- पीने के अन्य सामान में नशीला पदार्थ खिला देती थी। यात्रियों के बेहोश होते ही वह उनका सामान लेकर रफूचक्कर हो जाती।</span> कभी पति-पत्नी इस तरह की घटना को साथ अंजाम देते और कभी अलग-अलग। वह काफी सालों तकं चोरी की वारदातों में शामिल रही। एक बड़े शहर में उसका आलीशान मकान है और राज्य के बाहर उसने जमीन भी खरीदी।सुगना ने कुबूल किया कि पांच -छह साल की चोरी और लूट की वारदातों में उसने लगभग २५-३० लाख का माल साफ किया। उस पर चोरी के नौ केस लगे, इनमें से वह छह केस में बरी भी हो गई। राज्य के कई जिलो से जुड़े इन केसों और उसके काले कारनामों ने उसको शातिर चोर बना दिया। शातिर चोर की छवि के चलते ही उसको कई चोरी के अन्य मामलों में भी गिरफ्त में लिया गया। युवा सुगना को अपने गुनाहों पर बिल्कुल भी अफसोस नहीं था। उसका मानना था जेल उसकेे लिए लंबा ठिकाना नहींं रहती। गलत राह की ओर चल पडी सुगना को सही-गलत का भान नहीं । <span style="color:#ff0000;">वह नहीं समझ पाई कि उसकी अब तक की बनी छवि उसको ताउम्र परेशान करेगी। सुगना चाहे खुशी मनाए अपनी लाखों की सम्पत्ति पर, लेकिन यह सम्पत्ति जुटाने पर उसे हासिल क्या हुआ? वह दो मासूमों के साथ जेल में पहुंच गई।सुख की खातिर कमाई यह हराम की कमाई उसके दुखों का कारण बन गई। </span></p>चाँद मोहम्मदhttp://www.blogger.com/profile/05619482915836049968noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-452001228846712871.post-15270465456867934262009-08-19T17:58:00.000+05:302009-08-19T18:18:40.435+05:30<strong><span style="color:#ff0000;">महिला कैदी-6</span></strong><br /> <br /><span class=""></span><span style="font-size:130%;">मेरी किताब <span style="color:#009900;">सलाखों में सिसकती सांसे</span> की छठी कड़ी</span><br /><span style="font-size:180%;"><span style="color:#3333ff;"><span class=""></span></span></span><br /><span style="font-size:180%;"><span style="color:#3333ff;">अंधकारमय भविष्य</span></span><br /><span class=""> युवा</span> रतनी अपने हमउम्र कैलाश के प्यार में इतनी अंधी हो गई थी कि उसे आगे-पीछे का कुछ नजर नहीं आता था। वह तो रात-दिन प्यार में पागल रहती थी।दरअसल जिसे वो प्यार समझती थी, वो मात्र शारीरिक आकर्षण था। वो लड़का भी उसके शरीर को ही भोगता था। रतनी तो इस ओर भी नहीं सोचती थी कि घर वालों ने बचपन में ही उसके हाथ पीले कर उसे किसी और का बना दिया है। उन <span style="color:#ff0000;">दोनों ने नहीं सोचा था कि उनकी इस गलती के चलते सुख-चैन उनसे कोसों दूर चला जाएगा। ऐसा ही हुआ। हालात ऐसे बने कि रतनी ने अपनी ही चाची का कत्ल कर डाला। इसी जुर्म के चलते वह पहुंच गई जेल क ी सलाखों में।</span> राह भटकी इस इक्कीस वर्षीय रतनी के घर वाले खेती करते थे। छह बहन-भाइयों में चौथे नम्बर की रतनी अपने हमउम्र कैलाश के सम्पर्क में आई और फिर चल पड़ी गलत राह की ओर। दोनों में शारीरिक सम्पर्क होने लगा। कुछ वक्त तो उनका यह मामला दबा रहा, लेकिन एक दिन उन दोनों को आपत्तिजनक स्थिति में रतनी की चाची ने देख लिया। पकड़े जाने पर वे दोनों बौखला गए और इस गलती को छिपाने के लिए अंजाम दे डाला उससे भी बड़ी गलती को। रतनी ने अपने साथी कैलाश के साथ मिलकर अपनी ही तीस वर्षीय चाची को मौत के घाट उतार दिया। दोनों ने उस महिला पर ताबड़तोड़ वार कर उसे मौत की नींद सुला दिया। एक के बाद की इस दूसरी गलती ने दोनों को सलाखों में पहुंचा दिया। उनका गुनाह छिप नहीं सका और दोनों को उम्रकैद की सजा हो गई। जवानी की गलती ने दोनों की जवानी को कैद कर दिया। इस भूल ने रतनी को कहीं का नहीं छोड़ा। वह अपनों की नजर में गिर गई और बचपन में तय किया ससुराल भी उसके हाथ से निकल गया। उसकी जिन्दगी के सामने कई सवाल खड़े हो गए जिनके जवाब वो खुद नहीं जानती थी। इस ग्रामीण बाला का विवाह नजदीक के ही एक गांव में पांच वर्ष की उम्र में ही कर दिया गया था। पहले तो ससुराल वाले उसे ले जाना चाहते थे, लेकिन उसके रंग-ढंग देख उसका पति भी उससे नफरत करने लगा था। बचपन में बनी पत्नी को लाने से उसने इनकार कर दिया। उसने दूसरा विवाह कर लिया। शादी के बाद रतनी एक बार भी ससुराल नहीं गई थी। उन्नीस साल की उम्र में रतनी जेल पहुंच गई उम्रकैद की सजा भुगतने। उसकी नादानी और नाजुक उम्र ने उसे सजा दिला दी उïम्रकैद की। सजा होने पर जेल में मम्मी-पापा रतनी से मिलने आते थे। वह जेल में निवार बनाने, झाड़ू और रोटी बनाने का काम करती थी। भविष्य के बारे में पूछने पर उसके चेहरे पर एक साथ कई प्रश्न उभर आते थे। <span style="color:#ff0000;">वो खुद नहीं जानती थी आगे क्या होगा? जेल से जल्द छूट भी जाएगी तो उसकी आगे की जिन्दगी किस ओर रुख करेगी, पता नहीं? अगर सजा बरकरार रहती है तो उसकी जवानी तो जेल में ही पूरी हो जाएगी? बाद में कौन उसका साथ देगा? तब तो माता-पिता खुद सहारे के मोहताज हो जाएंगे। यह सब सोचकर वो गंभीर हो जाती थी। खो जाती थी अंधेरे भविष्य के अंधकार में। </span>चाँद मोहम्मदhttp://www.blogger.com/profile/05619482915836049968noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-452001228846712871.post-82942549649693984602009-08-12T17:06:00.000+05:302009-08-12T17:12:33.636+05:30<p><strong><span style="color:#3333ff;">महिला कैदी-5</span></strong><br /><strong><span style="color:#ff0000;">मेरी किताब <span style="color:#3333ff;">सलाखों में सिसकती सांसे</span> की पांचवी कड़ी</span></strong> </p><p><span style="font-size:180%;"> <strong><span style="color:#33cc00;">जिंदगी नरक बनी</span></strong></span><br /><span class=""></span></p><p><span class=""> <span style="color:#ff0000;">जमीन</span></span><span style="color:#ff0000;"> हथियाने की जेठ की गलत नीयत ने संतोषी की जिन्दगी को तबाह करके रख दिया। परिस्थितियों ने उसके खिलाफ ऐसा मोर्चा खोला कि उसका ससुराल छूट गया, पति पागल हो गया और उसके बच्चे बेघर। इन्ही परिस्थितियों ने संतोषी को सास के कत्ल के जुर्म में सलाखों में पहुंचा दिया।</span> संतोषी को अपनी सास की हत्या करने के जुर्म में उम्र कैद की सजा हो गई। वह उन ग्यारह अपराधियों में शामिल हो गई जिन्होंने उसकी सास की हत्या की। जेठ ने दर्ज कराए केस में इन ग्यारह लोगों पर यही इल्जाम लगाया कि इन्होंने उसकी नब्बे वर्षीय अन्धी मां को कुएं में धकेलकर मार दिया। इस सम्बन्ध में संतोषी कुछ अलग ही दास्तां बयां करती हैै। उसकी जुबां एक अलग ही ऐसा दर्दनाक मंजर सामने पेश करती है, जिसके चलते वो कहीं की नहीं रही और उसकी जिंदगी नरक बनकर रह गई। तीस वर्षीय संतोषी केेमुताबिक उसकी शादी अजमेर जिले के एक गांव में हुई। घर में खुशहाली थी। पति खेत में काम करते थे और वह उसके काम में हाथ बंटाती थी। शादी के शुरुआती तीन साल सुखद व खुशी-खुशी बीते। इसी दौरान उसके एक बेटी व एक बेटा हुआ। संतोषी का जेठ पूरी जमीन हड़पना चाहता था। वे दो भाई थे और उसकी नजर अपने छोटे भाई की जमीन पर थी। जमीन का एक बड़ा हिस्सा व कुआं संतोषी के पति के नाम ही था। जेठ चाहता था कि वह जमीन भी उसी के हिस्से मेंं आ जाए। <span style="color:#3333ff;">संतोषी का आरोप था जेठ की इस बदनियति के चलते ही उसने उसके पति को खाने-पीने में ऐसा कुछ खिला दिया कि वह कुछ वक्त बाद ही पागल हो गया। उसकी याददाश्त जाती रही और वह मारा-मारा फिरने लगा। स्वार्थ के चलते भाई का प्यार व रिश्ता भी गौण हो गया और मकसद हो गया जमीन हड़पना।</span> पति के पागल होते ही संतोषी पर तो मानो पहाड़ टूट पड़ा। उसे तो अपना व अपने बच्चों का भविष्य अन्धकारमय नजर आने लगा। दो माह की बेटी व डेढ़ साल के बेटे को देख वह अक्सर गमगीन हो जाती और चिंतित हो उठती उनके मुस्तकिल के बारे में सोचकर। पति के पागल होने के बाद कुछ वक्त तो वह ससुराल में रही लेकिन सास और जेठ की प्रताडऩा ने उसे घर छोडऩे पर मजबूर कर दिया। संतोषी के अनुसार जेठ को यह लगता था कि संतोषी उसके जमीन हड़पने में रोड़ा है। इसी के चलते उनका यह प्रयास था कि वह ससुराल छोड़कर कहीं चली जाए और फिर कहीं अन्यत्र शादी कर ले। ससुराल वालों की प्रताडऩा के चलते वह अपने पीहर आ गई। उसके बच्चे भी ननिहाल में पढऩे-लिखने लगे। एक लम्बे वक्त की उथल-पुथल के बाद संतोषी का जीवन फिर से धीरे-धीरे सामान्य होने लगा लेकिन पति की पीड़ा उसके दिल मेंं कांटा बन गई, जो उसे अक्सर चुभता रहा। इस बीच वह अपने पति की खैर-खबर लेती रही और ससुराल की अपनी जमीन पर भी नजर रखी। वक्त के मरहम ने उसके घाव को कुछ भरा ही था कि उस पर तो फिर पहाड़ टूट पड़ा। उसकी नब्बे वर्षीय अन्धी सास कुएं में गिरी मिली। संतोषी, उसके दो भाई, दो भाभियों सहित ग्यारह जनों पर उसकी सास को कुएं में धकेलकर मारने का आरोप लगा। और फिर इसी जुर्म के चलते संतोषी जेल पहुंच गई। जेल मेंं ससुराल व पति का जिक्र होते ही उसकी आंखों से आंसू टपकने लगते। पति का खयाल आते ही वह सुबकने लगती। उसका वैवाहिक जीवन तो मात्र तीन साल का ही रहा और वियोग का जीवन ग्यारह साल का और फिर शुरू हो गया, जेल का जीवन।जेल मेंं बच्चों के भविष्य को लेकर वह इतनी चिंतित नहीं रहती, जितनी अपने पति को लेकर दुखी रहती। रो पड़़ती जब उसको याद आता कि उसका पति फटेहाल स्थिति में घूमता रहता है, तो कभी मिट्ïटी में मुंह देकर पड़ा रहता है। <span style="color:#ff0000;">इस पूरे घटनाक्रम के दो पहलू सामने आते हैं। संतोषी को अपने गुनाह की सजा मिली या जेठ के गुनाह की, यह तो ईश्वर ही जाने, लेकिन उनके गुनाह ने इस पूरे परिवार को सजा भुगतने को मजबूर कर दिया। पति-पत्नी जुदा हो गए और बच्चे बेघर।<br /></span> </p>चाँद मोहम्मदhttp://www.blogger.com/profile/05619482915836049968noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-452001228846712871.post-32679471332391437642009-08-11T16:55:00.000+05:302009-08-11T17:01:44.804+05:30<p><strong><span style="color:#ff0000;">महिला कैदी-4</span></strong></p><p><span class=""></span><strong><span style="color:#3333ff;">मेरी किताब <span style="color:#ff0000;">सलाखों में सिसकती सांसे</span> की चौथी कड़ी</span></strong> </p><p><span style="font-size:180%;color:#33cc00;">जिस्म का सौदा</span> </p><p> दुल्हन के रूप में पहली बार ससुराल आई रंजना के अनेक ख्वाब थे। पति का प्यार व सास- ससुर का आशीर्वाद, यह सब उसे मिलेंगे और वह पतिव्रता धर्म का पालन करेगी। लेकिन <span style="color:#ff0000;">ससुराल में रंजना को अलग ही माहौल मिला। सास ने ही रंजना पर किसी और का बिस्तर गर्म करने का दबाव डाला। शुरू में तो उसने आनाकानी की लेकिन सास- ससुर व पति के दबाव के चलते उसे अपना जिस्म किसी और को सौंपना पड़ा। दरअसल उसके सास- ससुर एक पॉश कॉलोनी में अपने घर में जिस्म फरोशी का काम करते थे।</span> फिर उन्होने अपने घर की बहू को भी जिस्म बेचने के धंधे में शामिल कर लिया। ससुराल में मिले अनेपक्षित माहौल से रंजना तो कुछ समझ भी नहीं पाई थी। सास, ससुर व पति द्वारा इसे अपना धंधा बताने पर उसने सब कुछ स्वीकार कर लिया था। वक्त के साथ ही वह इस रंग में रंग गई और नए- नए लोगों के साथ रात गुजारना उसकी आदत हो गई। चालीस वर्षीय रंजना शादी के बाद से ही वेश्यावृत्ति के धंधे में शामिल हो गई। उसे यह पेशा उसके सास- ससुर से मिला। उसकी सास भी तो जिस्म फरोशी का ही धंधा करती थी। खुद भी अपना जिस्म बेचती थी और अपनी बहू और अन्य लड़कियां लाकर उनसे भी यही काम कराती थी। इस दलदल में फंस चुकी रंजना को शादी के कुछ सालों बाद ही यह धंधा रास आने लगा। परिवारं से मिले इस धंधे ने उसे भी अय्याश बना दिया। फिर तो वह भी इस धंधे में अपनी सास का भरपूर साथ देने लगी। <span style="color:#3333ff;">सास के बाद उसने खुद ही यह धंधा संभाल लिया।वह मुम्बई सहित कई बड़े महानगरों से लड़कियां लाती थी और उनसे वेश्यावृत्ति कराती थी। एक निश्चित रकम उन लड़कियों को थमाती और शेष खुद रखती। वह एक साथ लगभग चार- पांच लड़कियां रखती थी।</span> कुछ दिनों बाद वह फिर नई लड़कियां लाती थी। रंजना का पति इस धंधे में उसकी पूरी मदद करता था। चाहे मामला लड़कियां लाने का हो या फिर अपनी पत्नी को किसी ओर के पास भेजने का, सभी में उसके पति की सहमति होती थी। लम्बे वक्त से इस पेशे से जुड़ी रंजना एक दिन पुलिस की गिरफ्त में आ गई। उसके घर पर लड़की भी बरामद हुई। उसे वेश्यावृत्ति, अपहरण और बलात्कार में मदद करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया और वह पहुंच गई जेल में। बार- बार कुरेदने पर भी उसने अपने जीवन से जुड़े विभिन्न पहलुओं के बारे में ज्यादा नहीं बताया। लेकिन यह बात जरूर सामने आई कि ससुराल के बिगड़े माहौल ने ही उसे बिगाड़ कर रख दिया। ससुराल वालों के दबाव व माहौल ने ही उसे जिस्मफरोशी के दलदल में फंसा दिया, जिससे निकलना उसके लिए मुश्किल हो गया था। अपने इलाके में 'आण्टीÓ के नाम से मशहूर रंजना लड़कियों की खराब आर्थिक स्थिति का फायदा उठाकर उन्हें इस धंधे में लाती थी। <span style="color:#ff0000;"><strong>औरत की इज्जत को धंधा बनाने वाली यह औरत जेल में खुद बेइज्जती का जीवन गुजार रही थी। यह उसकी संकीर्ण सोच ही थी कि इस जिल्लत भरी जिन्दगी में ही उसे विलासिता नजर आ रही थी।</strong></span></p>चाँद मोहम्मदhttp://www.blogger.com/profile/05619482915836049968noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-452001228846712871.post-21298255450944945062009-08-10T17:00:00.000+05:302009-08-10T17:04:14.832+05:30<p><strong><span style="color:#3333ff;">महिला कैदी-3</span></strong><br /><span style="font-size:130%;color:#ff0000;">मेरी किताब <span style="color:#3333ff;">सलाखों में सिसकती सांसे</span> की तीसरी कड़ी</span></p><p><span class=""></span><span style="font-size:180%;color:#33cc00;"><strong>घर, ना ठिकाना</strong></span> </p><p><span style="color:#ff0000;">पति की अय्याशी की आदत ने नजमा को कातिल बना दिया। वह नहीं चाहती थी उस महिला का कत्ल करना। नजमा तो यही चाहती थी कि वह महिला उसके पति की जिन्दगी से निकल जाए। उन्हें सुख-चैन की जिन्दगी गुजारने दें। पहले पति की मौत के सदमे से भी तो वह मुश्किल से उबर पाई थी।</span> अपने व तीन बेटे-बेटियों के भविष्य की खातिर ही तो उसने यह दूसरी शादी रचाई थी। सुख-चैन की खातिर रचाई दूसरी शादी ही उसकी बर्बादी का कारण बन गई। अय्याश पति की हरकतों से परेशान नजमा ने एक महिला का कत्ल कर दिया। उस महिला से उसके पति के नाजायज रिश्ते थे। नजमा ने यह कारनामा अपनी मां के साथ मिलकर किया। कत्ल के जुर्म में दोनों मां-बेटियों उम्रकैद की सजा हुई। इस हादसे ने नजमा के चार बेटे-बेटियों को सड़क पर ला दिया। उसके अपने छोटे भाई भी बेघर हो गए। दोनों मां-बेटियों का घर जेल हो गया। पति ने भी नजमा को अपने हाल पर छोड़ दिया। अट्ठाइस वर्षीय नजमा का शुरुआती वैवाहिक जीवन खुशियों से भरपूर था। उसकी शादी यू.पी. के एक शहर में हुई। उसका पति सिलाई मशीन सुधारने का काम करता था। घर में सब कुछ अच्छा खासा चल रहा था। इस बीच नजमा के तीन संतानें हुईं। दो लड़के व एक लड़की। समय ने पलटा खाया और नजमा के उल्टे दिनों की शुरुआत हो गई। उसका पति टी बी की चपेट में आ गया। और एक दिन इसी बीमारी की वजह से वह दुनिया छोड़ गया। पीछे रह गए नजमा और उसके तीन मासूम बच्चे। शादी के आठ साल बाद ही उसका पति मर गया। नजमा जवानी में ही विधवा हो गई। उसे अपना व अपनी संतान का भविष्य अंधकारमय नजर आने लगा। वह अपने बच्चों के साथ पीहर लौट आई। लगभग पांच साल तक वह अपने पीहर ही रही। फिर उसने अपने बच्चों की खातिर दूसरी शादी करने का फैसला किया। दूसरी शादी करने के बाद नजमा को पता चला कि उसके दूसरे पति के पहले से एक पत्नी है। दूसरे पति ने उससे धोखे से शादी कर ली। पति ने अपनी पत्नी व तीन बच्चों के बारे में भी उसे नहीं बताया था। दूसरी शादी के नाम पर धोखा मिलने के बावजूद नजमा ने सब्र किया। अपना लिया उस धोखेबाज पति को अपने मासूम बच्चों के भविष्य की खातिर। नजमा के दूसरे पति के अच्छा- खासा काम था। अच्छी आय थी। इस बीच नजमा के दूसरे पति से एक लड़का हुआ। नजमा का <span style="color:#3333ff;">दूसरा पति अय्याश किस्म का तो था ही। उसकी इस गलत आदत के चलते ही उसके फिर एक महिला से अवैध सम्बन्ध हो गए। नजमा पर तो मानो पहाड़ टूट पड़ा। उसने पति को खूब समझाया। नजमा को तो फिर अपना घर उजड़ता नजर आने लगा। और फिर एक दिन बौखलाई नजमा ने उस महिला को कमरे में बन्द कर तेल छिड़ककर मार डाला।</span> इस काम में साथ दिया उसकी मां ने। वह नहीं चाहती थी फिर से बसाई अपनी गृहस्थी को उजाडऩा। उसकी दूसरी शादी को भी तो अभी दो साल ही हुए थे। उसे यह भी भान नहीं रहा कि इस गलत हरकत से भला क्या उसका गृहस्थ-जीवन बच पाएगा? इस अपराध के चलते नजमा व उसकी मां को उम्रकैद हो गई। नजमा का मासूम सवा दो साल का बेटा भी उसके साथ जेल पहुंच गया। मां के साथ रहने की मजबूरी ने इस मासूम के बचपन पर पहरे लगा दिए। जेल से बाहर छूटे नजमा के तीनों बेटे-बेटी भी बेघर हो गए। उधर मां के जेल पहुंचने से नजमा के दो भाई भी कहीं के नहीं रहे। नजमा के पिता तो पहले ही गुजर चुके थे। दोनों मां-बेटियों की सुनवाई और सुध लेने वाला घर में कोई नहीं था। <span style="color:#ff0000;">नजमा का पति भी उसे छुड़ाना नहीं चाहता था। वह जेल में बन्द अपने बेटे को तो ले जाना चाहता था। वह तो फिर किसी एक नई महिला को अपने साथ रख रहा था। नजमा अपने व बेटे-बेटियों के बारे में सोचकर मायूस रहती थी। उसे तो कोई उम्मीद की किरण भी नजर नहीं आती थी।</span></p>चाँद मोहम्मदhttp://www.blogger.com/profile/05619482915836049968noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-452001228846712871.post-24755948682428985022009-08-08T16:18:00.001+05:302009-08-08T16:39:07.154+05:30<span style="font-size:130%;color:#3333ff;">महिला कैदी-2</span><br /><span style="font-size:130%;"><span style="color:#ff0000;">मेरी किताब</span> <span style="color:#3333ff;">सलाखों में सिसकती सांसे</span> <span style="color:#ff0000;">की दूसरी कड़ी</span></span><br /><strong><span style="font-size:180%;"></span></strong><br /><strong><span style="font-size:180%;">तबाह कर गया नाजायज रिश्ता</span></strong><br /><span class=""> नाजायज रिश्ते जिन्दगी</span> कब किस मुकाम पर लाकर खड़ा कर दें, कुछ कहा नहीं जा सकता। क्षणिक सुख का एहसास कराने वाले ये अवैध सम्बन्ध जिन्दगी को नरक बनाकर ही छोड़ते हैं। बयालीस वर्षीय रमना की जिन्दगी से जुड़ा वाकिया भी यही दर्शाता है। पति के गुजरने के बाद रमना एक व्यक्ति के प्रेम जाल में फंस गई। उनका यह प्रेम कुछ वर्ष चला लेकिन प्रेमी उसके लिए गले की हड्डी बन गया। उनके सम्बन्ध के बारे में उसके बेटे सहित कुछ लोगों को शक होने पर प्रेमी से परेशान इस महिला ने अन्तत: प्रेमी की हत्या कर दी। इस अपराध के चलते उसे उम्र कैद की सजा सुना दी गई। रईसों की सी जिन्दगी गुजारने वाली व प्रधानाध्यापिका रह चुकी एम.ए. पास इस महिला ने सपने में भी नहीं सोचा था कि जेल की कोठरी भी उसका मुकाम होगा। रमना की रईसाना जिन्दगी रही। उसके पिता पुलिस अधिकारी थे। बचपन से ही वह पढऩे लिखने व गेम्स आदि में अग्रणी रही। उसकी शादी मुम्बई में एक अच्छे परिवार में हुई। उसके पति एक कम्पनी में अच्छे ओहदे पर थे। घर में खुशहाली थी। पति की अच्छी आय थी। ऐशो आराम व सुकून भरी जिन्दगी थी। उसके पास वे सब खुशियां थीं, जो हर किसी की किस्मत में नहीं होती। इस दौरान उसके एक लड़का व एक लड़की हुई। रमना की सुकून भरी जिन्दगी में एक भूचाल उस वक्त आया जब उसके पति की बीमारी से मृत्यु हो गई। उसके लिए यह गहरा सदमा था। फिर वह राजस्थान आ गई और यहां एक सरकारी स्कूल में टीचर हो गई। एम.ए.तक पढ़ाई कर चुकी रमना नौकरी मिलने पर फिर से नॉर्मल होकर गुजर बसर करने लगी। लेकिन इस बीच <span style="color:#3333ff;">वह एक व्यक्ति के प्रेम जाल में फंस गई। रमना और उस व्यक्ति का यह अवैध रिश्ता छिप नहीं सका और कई लोगों को इसका शक हो गया। उसके बेटे को भी उन पर शक होने लगा। उधर प्रेमी की हरकतों से भी वह परेशान हो उठी। अवैध सम्बन्ध उसकी परेशानी का सबब बन गया।</span> और एक दिन रमना के घर के पीछे के सूने पड़े मकान में उस व्यक्ति की लाश मिली। रमना को इस अपराध का दोषी माना गया। उसे हत्यारिन करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुना दी गई। कत्ल की घटना १९९८ में हुई। रमना के पति की मृत्यु १९९३ में हो गई थी। पिछले चौदह साल रमना की जिन्दगी में उथल- पुथल वाले ही रहे। पढ़ाई कर रहे अपने बेटे के कैरियर को लेकर वह जेल में चिंतित रहती थी। हालांकि उसने अपनी बेटी का ब्याह कर दिया था लेकिन फिर भी वह अपने परिवार की चिंता में डूबी रहती थी। अब तो जेल का जीवन ही उसकी दिनचर्या में शामिल था। वह जेल में अक्सर अपने अच्छे दिनों की याद में खो जाती थी। जब वह स्कूल की प्रधानाध्यापिका थी और कई टीचर उसके अधीन काम करती थीं। वह बच्चों का कैरियर बनाने में जुटी रहती थी, लेकिन अब... खुद उसका कैरियर...? इस हादसे से उसकी नौकरी भी जाती रही और अच्छे दिन भी। बचपन से डायरी लिखने की शौकीन रमना की जिन्दगी खुद एक किस्सा बन गई थी। <span style="color:#3333ff;">वह बचपन से लेकर जेल से आने पूर्व तक डायरी लिखती थी, लेकिन जेल में आने के साथ ही उसका डायरी लेखन भी छूट गया। शायद जेल से छूटने के बाद वह फिर से डायरी लिखे, जिसका विषय उसकी जेल की जिन्दगी हो। इसमें छिपा हो ऐसा सबक, जो सबको सीख दे सही राह चलने की।</span>चाँद मोहम्मदhttp://www.blogger.com/profile/05619482915836049968noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-452001228846712871.post-6778645830826386212009-08-05T17:24:00.000+05:302009-08-05T18:00:24.481+05:30<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhpwL2XZwpLI6U2MU_hixKoamEispiR3YVP3N4j_30kZPfnjgCjavjtVk1g05wZE5Kwd-HE4u-8SZ8zRkvbNyFfAf3HId7AVGrRSnoPRrAP7fr_1BOw_I0SVbHS72hyphenhyphennhjLVwrQ5Oe-8RmY/s1600-h/salakhen.jpg">दास्तां महिला कैदियों की<br />मेरी किताब <span style="color:#ff0000;"><strong>सलाखों में सिसकती सांसे</strong></span> की पहली कड़ी<img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5366447433371295362" style="FLOAT: left; MARGIN: 0px 10px 10px 0px; WIDTH: 208px; CURSOR: hand; HEIGHT: 320px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhpwL2XZwpLI6U2MU_hixKoamEispiR3YVP3N4j_30kZPfnjgCjavjtVk1g05wZE5Kwd-HE4u-8SZ8zRkvbNyFfAf3HId7AVGrRSnoPRrAP7fr_1BOw_I0SVbHS72hyphenhyphennhjLVwrQ5Oe-8RmY/s320/salakhen.jpg" border="0" /></a><br /><div><strong><span style="font-size:130%;color:#ff0000;"></span></strong></div><div><div><span style="font-size:130%;color:#ff0000;"><span style="font-size:100%;">लगभग पांच साल पहले राजस्थान पत्रिका के परिवार परिशिष्ट में मैंने महिला कैदी नाम से एक कॉलम लिखा। इस कॉलम में बीस महिला कैदियों की जिंदगी से जुड़े कई पहलू जानने की कोशिश की। हर हफ्ते एक महिला कैदी से मुलाकात का सिलसिला लगभग पांच माह तक चला। मेरी यह सीरीज अब एक किताब सलाखों में सिसकती सांसे के रूप में आ चुकी है। अब मैं अपने ब्लॉग पर इस किताब से लूंगा एक एक महिला कैदी की दास्तां।</span><br /></div></span><span class=""></span></div><br /><strong><span class=""></span></strong><div><strong><span class=""></span></strong></div><div><strong><span style="font-size:180%;color:#3333ff;">मां ने सुला दिया मौत की आगोश में</span> </strong></div><div><strong>तीन वर्षीय मासूम बालिका नेहा का कोई गुनाह नहीं था। वह तो खुश थी कि उसे नई मां मिली है। यह मासूम मन तो इससे भी बेखबर था कि उसको जन्म देने वाली मां तो दुनिया से रुखसत हो चुकी है। वह अपनी नई मां के साथ खुश थी और बचपन की खुशियां बांट रही थी। यह बेचारी नन्ही जान नहीं जानती थी कि नई मां के रूप में आई यह महिला ही उसकी इहलीला खत्म कर देगी। उस नन्ही कली को खिलने से पहले ही मसोस देगी। ऐसा ही हुआ। नई मां मनभर ने उस मासूम बच्ची को गला घोंटकर मौत के घाट उतार दिया। वजह सिर्फ यही थी कि नेहा उसके पति की पहलïी पत्नी की औलाद थी और मनभर उससे नफरत करती थी। उस मासूम बाला की हत्या की आरोपी मनभर को उम्रकेद की सजा सुनाई गई। उदयपुर जिले के एक गांव में ब्याही गई मनभर की उम्र शादी के वक्त लगभग २० साल थी। उसका विवाह ऐसे व्यक्ति से हुआ था जिसकी पहली पत्नी मर चुकी थी। पहली पत्नी के एक बेटी थी। शादी के बाद से ही मनभर अपने पति की पहली पत्नी की बेटी नेहा से नफरत करती थी। वह उसे बिल्कुल पसंद नहीं करती थी। साथ ही उसके मन में था कि उसके पति का प्यार सिर्फ उसी के लिए हो। यह प्यार बेटी के रूप में भी न बंटे। इसी बदनियति के चलते मासूम बालिका नेहा मनभर की आंखों का कांटा बनी रही। एक दिन तो इस नफरत की भी हद हो गई। मनभर ने रस्सी से उस बच्ची का गला घोंटकर उसे मौत के घाट उतार दिया। मनभर के ऊपर सवार हुए नफरत के भूत ने उसे हत्यारिन बना दिया। वो भी एक नन्हीं कली का। सौतेली मां की नफरत की शिकार नेहा हमेशा के लिए दुनिया से विदा हो गई। यह घटना मनभर की शादी के एक वर्ष बाद की ही है। वह बच्ची को अपने वैवाहिक जीवन में भी रोड़ा मानती थी। मनभर का गुनाह छिप नहीं सका और वह बच्ची की हत्या की मुजरिम करार दी गई। उसे हत्या के आरोप में उम्रकैद की सजा सुनाई गई। वह हर खुशी से महरूम हो गई और मजबूर हो गई जेल की कोठरी में जिंदगी गुजारने को। जेल की सजा के दौरान शाम होते ही अन्य महिला कैदियों के साथ वह बैरक में बन्द हो जाती थी। उसके गुनाह का ही नतीजा था कि उससे उसके अपने ही कन्नी काटे हुए थे। ससुराल में उसके सास- ससुर, पति व तीन जेठ थे और पीहर में माता- पिता व तीन भाई । इसके बावजूद वर्षों तक जेल में उससे मिलने कोई नहीं आया। उसके साथ बन्द महिला कैदियों के कई रिश्तेदार उनसे मिलने आते थे, लेकिन उसने तो जेल आने क बाद अपनों का पिछले कई वर्षों से मुंह तक नहीं देखा था। यह उसके गुनाह और बदनियति का ही अंजाम था कि उसे जिल्लत भरी जिंदगी गुजारनी पड़ रही थी। जेल से छूटने के बाद वह कहां जाएगी? इस सवाल पर वह फिर सोचने लगती और धीरे से बोलती 'मां- बाप के पासÓ। वह समझ चुकी थी कि ससुराल के दरवाजे उसके लिए हमेशा के लिए बन्द हो चुके हैं। उसका वैवाहिक जीवन मात्र साल भर का रहा और जेल का जीवन? यहां मनभर एक पात्र है नफरत का, जिसने इक मासूम बालिका की जान लेकर न केवल अपना जीवन बिगाड़ लिया, बल्कि ससुराल व पीहर वालों की खुशहाल जिन्दगी को भी तबाह कर दिया। नफरत व क्रोध के हावी होने को ही दर्शाता है यह दर्दनाक हादसा।</strong></div>चाँद मोहम्मदhttp://www.blogger.com/profile/05619482915836049968noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-452001228846712871.post-9397358369893711862009-08-01T17:04:00.000+05:302009-08-01T17:17:56.964+05:30गायत्री देवी --खामोश हुआ एक शाही सौन्दर्य<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiB_g9k4CS48NE1rvJFwX9D_T4mNEr9I9wS76dv87IwXLzTD2nmfKnRB3rgGCsEdg6mru7OA5jXZTH5_cRE2pWVvQ3zQE3BOQWKcvHViem0RmQHeLTbobysUgjg2xaJJeqCw5adOVBn1zyA/s1600-h/gayatri+devi.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5364959220628742754" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 240px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiB_g9k4CS48NE1rvJFwX9D_T4mNEr9I9wS76dv87IwXLzTD2nmfKnRB3rgGCsEdg6mru7OA5jXZTH5_cRE2pWVvQ3zQE3BOQWKcvHViem0RmQHeLTbobysUgjg2xaJJeqCw5adOVBn1zyA/s320/gayatri+devi.jpg" border="0" /></a><strong> </strong>जयपुर की पूर्व महारानी और दुनिया की दस खूबसूरत महिलाओं में शुमार गायत्री देवी के दुनिया छोड़ जाने की खबर पर सहसा भरोसा नहीं हुआ। मुझे लगा मानो वो मेरे सामने है और अपने बचपन को बखूबी बयान कर रही है। इस खबर के साथ ही मेरे जहन में उनसे मुलाकात की वो सारी यादें ताजा हो आईं। लगभाग आधे घण्टे की उस मुलाकात में मैं उनसे बेहद प्रभावित था।<br /> बात लगभग ढाई साल पहले की है। मुझे राजस्थान पत्रिका के परिवार परिशिष्ट के लिए किसी खास शख्सियत का इन्टव्यू करना था। दरअसल हम परिवार में एक नया कॉलम शुरू करने जा रहे थे। इस कॉलम में हम मशहूर शख्सियतों के बचपन के बारे में लिखना चाहते थे। शुरूआत हम महारानी गायत्री देवी से करना चाहते थे। <span style="color:#3366ff;">इनसे साक्षात्कार करना कोई आसान काम नहीं था। दरअसल मेरी दिली ख्वाहिश भी थी उनसे मिलने की। मुझे मौका मिला और उनके खूबसूरत बचपन के दिलचस्प पहलू जानने को मिले। मुझे अच्छी तरह याद है बचपन की बात सुनते ही महारानी गायत्री देवी का चेहरा चमक उठा था। वे बोल पड़ीं - बचपन में हम भाई बहिन रोज हाथियों पर सवार होकर घूमने निकलते थे। बड़ा दिलकश नजारा होता था जब हम हाथी की सवारी करते थे।</span> हाथियों की सवारी की बात आते ही मानो वे खो गईं अपने शाही बचपन के स्वर्णिम पलों में। उम्र के आखरी पड़ाव पर भी उनका शाही अंदाज दिलकश था। उनके आवास लिलीपुल के गार्डन में आधा घण्टे की बातचीत में वे कई बार अपने बचपन की यादों में खो गई। बचपन में रोज हाथियों पर सवार होकर गांव में घूमने की बात उन्होंने मुझे कई बार बताई। उन्हें अपने बचपन पर फख्र था और होगा भी क्यों नहीं आखिर यह एक राजकुमारी बचपन था। <span style="color:#ff0000;">जब मैंने उनसे पूछा अगर उनको फिर से बचपन मिलता है तो वे किस तरह का बचपन चाहेंगी? उनका कहना था- मैं तो अपना ही बचपन चाहूंगी जो मैंने कुचबिहार में गुजारा। महारानी गायत्री देवी के साथ इस मुलाकात को मैं ताजिन्दगी नहीं भुला पाऊंगा।</span> उनके दुनिया से रुखसत होने का समाचार मिला तो <span style="color:#3333ff;">मैंने फिर से फाइल में उनका साक्षात्कार पढ़ा,उनसे बातचीत की रिकॉर्डिंग वाली कैसेट निकालकर फिर से उन्हें सुनने लगा। मुझे लगा मानो राजमाता गायत्री देवी लिलीपूल के गार्डन में बैठकर मुझे अपने बचपन से जुड़ी यादों के बारे में बताती जा रही है और मैं डायरी में इसे नोट करता जा रहा हू। कैसेट खत्म होने पर समझ आया अब तो यह बस याद है जो बाकी रहने वाली है सिर्फ जहन में।<br /></span><div><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhgwHlqPsZFWQIOntDoL8G61oJB9WcW7pwsXK9j_pUx03AXbLnBi592y8VZQemX83hsc5BOZxSVBi_J-qH51Mqa-GxxjGrgiPt9n5jFFdJ-1yBbiw9azIGoVHFfV_M1Flo96EAymsXG-i8g/s1600-h/gayatri.jpg"></a><br /><br /><div></div></div>चाँद मोहम्मदhttp://www.blogger.com/profile/05619482915836049968noreply@blogger.com17tag:blogger.com,1999:blog-452001228846712871.post-993253219328543802009-08-01T13:04:00.002+05:302011-09-15T18:00:57.904+05:30पूर्व महारानी गायत्री देवी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjb_fiPfvWHmCR94RtEtwcAm-4sOy4XCScPaGAVlTLpJ82xvytjnsrwLwo2o_y13OLGYS0tssT6xZCupdfMhbpua29N1RC-MXkvYKyCHtafncHdwznOKW1ysdP1eR0MixiwvNAQD1OJZBHN/s1600-h/gayatri.jpg">पूर्व महारानी गायत्री देवी ने ढाई साल पहले मुझे दिए एक इन्टरव्यू में बताए थे अपने बचपन से जुड़े विभिन्न पहलू। यहां पेश है उस वक्त प्रकाशित उनका वह एक्सक्लूसिव साक्षात्कार। </a><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiPAYgI9CzFD2r5wYyzWSpMdbMzytj6zBZ7DAYkWNzvc2dfYu2VH0RBMwJlEz8aHtLFFhKtk1W3XHSKWWvkfsGGHaLrwTq6VKdP6mmjmZn5xJ5LW0VtYNF8YfWvxeIR7_rn-QBDTBOwfQoV/s1600-h/gayatri.jpg"><img alt="" border="0" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5364896186276180514" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiPAYgI9CzFD2r5wYyzWSpMdbMzytj6zBZ7DAYkWNzvc2dfYu2VH0RBMwJlEz8aHtLFFhKtk1W3XHSKWWvkfsGGHaLrwTq6VKdP6mmjmZn5xJ5LW0VtYNF8YfWvxeIR7_rn-QBDTBOwfQoV/s320/gayatri.jpg" style="display: block; height: 320px; margin: 0px auto 10px; text-align: center; width: 246px;" /></a><br />
<div><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhWuRCeQpRWLDlOAUmIkhM1sRyQaTV_ayyGr-H3R-64nlF0qg0DHv6AxG4S6scD32jObcCbj6Ea_Yopktgm3qB35n68w7gigPlUCykhcD4m6bSqs71gxwYRTZ5RDG15e2rDt2a4bKIsBKgC/s1600-h/gayatri-2.jpg"><img alt="" border="0" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5364896183234318626" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhWuRCeQpRWLDlOAUmIkhM1sRyQaTV_ayyGr-H3R-64nlF0qg0DHv6AxG4S6scD32jObcCbj6Ea_Yopktgm3qB35n68w7gigPlUCykhcD4m6bSqs71gxwYRTZ5RDG15e2rDt2a4bKIsBKgC/s320/gayatri-2.jpg" style="display: block; height: 320px; margin: 0px auto 10px; text-align: center; width: 245px;" /></a><br />
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<div></div></div></div>चाँद मोहम्मदhttp://www.blogger.com/profile/05619482915836049968noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-452001228846712871.post-85817514631722256552009-07-31T21:46:00.000+05:302009-08-11T17:07:46.281+05:30<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhlBZCG_66efJR8JRIC8XWkMMxtq5nAWPYGPkjKPKW9YSGDPMdV0lnXiPa3AxTt6tJaTY34tGHIh1aboNDk8-zLTszc8aDif5gnfLHfrUcxYM6WvOrTvbWqAP6DpILTt19e5_0XqSq5HvnC/s1600-h/Gayatri_Collas.jpg">पूर्व महारानी गायत्री देवी -- </a><a href="http://chandmuhammad.blogspot.com/2009/07/blog-post_29.html">यादें बाकी रह गयीं</a><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhlBZCG_66efJR8JRIC8XWkMMxtq5nAWPYGPkjKPKW9YSGDPMdV0lnXiPa3AxTt6tJaTY34tGHIh1aboNDk8-zLTszc8aDif5gnfLHfrUcxYM6WvOrTvbWqAP6DpILTt19e5_0XqSq5HvnC/s1600-h/Gayatri_Collas.jpg"></a><br /><div><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjoYQFELNoeEghw48RzZsHeGYnBt4iH17AbhFZtcdgxFGmUXYVqYqb-0CYIMGrkPMZaQ-ZPhPVSURNKOhx9ki5D3jq2XZ06CoJJS4FdsH0q7C8cEbfBmZEK77bgUnwcor0ViOpu7npC8Wth/s1600-h/gayatari+devi-2.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5364661084697034210" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 276px; CURSOR: hand; HEIGHT: 320px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjoYQFELNoeEghw48RzZsHeGYnBt4iH17AbhFZtcdgxFGmUXYVqYqb-0CYIMGrkPMZaQ-ZPhPVSURNKOhx9ki5D3jq2XZ06CoJJS4FdsH0q7C8cEbfBmZEK77bgUnwcor0ViOpu7npC8Wth/s320/gayatari+devi-2.jpg" border="0" /></a><br /><br /><div><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEigpyA72cN3oroZHnbPHt6a0qXr689_V3yW2mr3JUM_KnQnkRBVTNKv_Veh7BgRGGBGooa-1TsXkC1J6o9bzQ-x21e6OyCwrmoUFSVqHmGlRnvzd21CUOFEMkSI8mIVTSYGFRIyiAX_nTp9/s1600-h/gayatri+devi-3.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5364661076543273490" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 194px; CURSOR: hand; HEIGHT: 320px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEigpyA72cN3oroZHnbPHt6a0qXr689_V3yW2mr3JUM_KnQnkRBVTNKv_Veh7BgRGGBGooa-1TsXkC1J6o9bzQ-x21e6OyCwrmoUFSVqHmGlRnvzd21CUOFEMkSI8mIVTSYGFRIyiAX_nTp9/s320/gayatri+devi-3.jpg" border="0" /></a><br /><br /><br /><div></div></div></div>चाँद मोहम्मदhttp://www.blogger.com/profile/05619482915836049968noreply@blogger.com3