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गुरुवार, 14 जनवरी 2010

काम नहीं आई हराम की कमाई


महिला कैदी-19

मेरी किताब सलाखों में सिसकती सांसे से
 
उसका ख्वाब बहुत अमीर बनने का था। इसीलिए तो उसने अफीम का धंधा शुरू किया। इसी धंधे की खातिर तो उसने अपने पहले पति को भी छोड़ दिया और शादी रचा ली उस व्यक्ति से जो खुद अफीम के कारोबार में शामिल था। अमीर बनने की चाह ने उसको जेल की कोठरी में पहुंचा दिया। जेल की कोठरी ही उसका लंबा ठिकाना बन गई।
 
   यह दास्तान है चालीस वर्षीय विद्या की, जो पिछले कई वर्षों से अफीम का गैर कानूनी काम करती थी। मध्यप्रदेश के मन्दसौर की रहने वाली विद्या ने चित्तौडग़ढ़ जिले के प्रतापगढ़ क्षेत्र को अपना कार्य क्षेत्र बनाया। वह चाहती थी लाखों की मालकिन बनना। इसी मानसिकता के चलते उसने इस धंधे में पैर पसारे। उसने शुरुआत छोटे पैमाने से की। वह कम दामों पर अफीम खरीदती थी और आस-पास के इलाके में आपूर्ति करती। इस गैरकानूनी धंधे की मोटी कमाई से वह इस दलदल की ओर बढ़ती गई। वह खुद ही अफीम तैयार करने लगी और सप्लाई का दायरा बढ़ता गया। अफीम का गैर कानूनी काम करने वालों में धीरे- धीरे उसकी पहचान बन गई। इस बीच विद्या अफीम का ही काम करने वाले एक व्यक्ति के सम्पर्क में आई। दोनों एक- दूसरे में दिलचस्पी लेने लगे। और फिर दोनों की एक- दूसरे के प्रति दिलचस्पी और दोनों मिलकर इस धंधे को आगे बढ़ाने की चाह के चलते दोनों ने शादी कर ली।

विद्या ने अपने पहले पति को छोड़ दिया। उसको लगा वह उसके धंधे के हिसाब से उतना फायदेमन्द नहीं है। विद्या और उसके दूसरे पति ने मिलकर फिर जोर- शोर से धंधा शुरू किया। विद्या राज्य के विभिन्न जिलों में अफीम सप्लाई करने लगी। दोनों ने मिलकर इस धंधे में अच्छा- खासा माल जुटाया। कहने को विद्या के स्लेट बनाने की फैक्ट्री थी लेकिन असली कमाई तो उसके अफीम से ही थी। वह इस धंधे में बेखौफ होकर आगे बढ़ती रही लेकिन एक दिन रंगे हाथों पकड़ी गई। वह दोषी पाई गई और उसे सजा हो गई चौदह वर्ष की। हालांकि विद्या पर अफीम कारोबार से जुड़े चार मामले और चले लेकिन वह उनमें बरी हो गई। अवैध तरीके से माल कमाकर एशोआराम की जिन्दगी का सपना देखने वाली विद्या तो सामान्य जीवन से भी महरूम हो गई थी। विद्या को जेल में दयनीय जिन्दगी से रूबरू होना पड़ा। उसके चार बेटे- बेटी थे। वह दूर हो गई अपनी संतान से, अपने परिवार से।उसे काली कमाई का चस्का लग चुका था। यही वजह थी कि उसे बिल्कुल भी अफसोस नहीं था अपने कारनामों पर। वह खुद और इस धंधे से जुड़ी अधिकांश बातें नहीं बताना चाहती था। उसका तर्क था, सब कुछ बता देने से तो उसका यह गैर कानूनी धंधा प्रभावित होगा। उसे भविष्य में अपने कारोबार में दिक्कत आएगी।

विद्या ठोकर खाने के बाद भी नहीं संभली थी और वह तो बढऩा चाहती थी फिर उसी राह की ओर।

1 टिप्पणी:

شہروز ने कहा…

aapki kahani ko padhne k liye furast ki darkaar hai lekinik hi post padhkar jo prbhaav bana hai uska parinaam hai ki main yahaan dubaara aaya.aur aaj apne yahaan aapka link de raha hun.
khoob likh rahe hain.