महिला कैदी-20
मेरी किताब सलाखों में सिसकती सांसे से
बहके कदम कई मर्तबा जिन्दगी को ऐसे मुकाम पर ला खड़ा कर देते हैं जहां सिवाय अंधकार, मायूसी और पश्चाताप के कुछ नहीं होता। बाइस वर्षीय प्रिया की जिन्दगी से भी ऐसा ही दुखद वाकिया जुड़ा हुआ है। उसके बहके कदमों का ही नतीजा था कि पति के कत्ल के जुर्म में उसे उम्र कैद की सजा हो गई । दिग्भ्रमित व राह भटकी इस नवविवाहिता की बदकिस्मती ही कही जाएगी कि शादी के चन्द महीनों बाद ही वह सेज से जेल की कोठरी में पहुंच गई।
नौवीं पास इस अभागी लड़की की शादी अलवर जिले के एक गांव में हुई थी। दूसरे राज्य से यहां ब्याही प्रिया का शुरुआती वैवाहिक जीवन खुशियों से भरपूर था। पति की दुकान थी और वह घर की जिम्मेदारी निभा रही थी। विवाह के कुछ वक्त बाद ही वह राह भटक गई और अपने देवर से दिल लगा बैठी। इन दोनों की अन्तरंगता बढ़ती गई और उन्होंने आगे की कुछ नहीं सोची। विवाह के तीन माह बाद ही प्रिया को पति की हत्या के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया गया। आरोप था, उसने अपने देवर व ननदोई के साथ मिलकर पति की हत्या की। हत्या के पीछे कारण देवर से अवैध रिश्ता होना और इसी के चलते पति को रास्ते से हटाना माना गया।
प्रिया को अपराधी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई गई । उसके देवर व ननदोई को भी अपराधी करार दिया गया। इस हादसे ने प्रिया को ऐसे मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया , जहां से आगे रास्ता कहां जाता है, वह खुद नहीं जानती थी। उसका भविष्य क्या है, खुद को पता नहीं था। प्रिया की नादानी ने उसकी जिंदगी को तबाह करके रख दिया। उसका बना हुआ जोड़ा और परिवार बिखर कर रह गया।
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गुरुवार, 14 जनवरी 2010
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1 टिप्पणी:
जनाब ब्लॉग बहुत अच्छा है, महिला कैदियों की दास्ताँ बहुत ही मार्मिक है, आपने हकीकत को पेश किया है
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