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शुक्रवार, 28 अगस्त 2009

महिला कैदी-10
मेरी किताब सलाखों में सिसकती सांसे की दसवीं कड़ी

बेघर हुए बच्चे

बच्चों का जिक्र होते ही सुप्यारी की आंखों से आंसू टपकने लगते थे।जेल में वह अपने चारों बेटे-बेटियों के बारे में सोचकर अक्सर उदास रहती थी। उसने तो सोचा भी नहीं था कि उसकी जिन्दगी में कभी ऐसा मुकाम आएगा कि उनके बच्चों पर न बाप का साया होगा न मां का। मां-बाप के जिन्दा रहते ही उसके बेटे-बेटी अनाथों सी जिन्दगी गुजारेंगे। एक हादसे से सुप्यारी के जीवन में ऐसा ही मोड़ आया। ए$क व्यक्ति की हत्या के मामले में उसको और उसके पति को उम्रकैद हो गई। हालांकि वे उस व्यक्ति [श्रवण] को मारना नहीं चाहते थे। उनका पूरा परिवार श्रवण की गलत हरकतों से परेशान था। आए दिन शराब पीकर श्रवण सुप्यारी के परिजनों के साथ मारपीट कर देता था। पूरा परिवार उससे डरा व सहमा हुआ था। आखिर श्रवण ताकतवर जो था। उसके भाई व रिश्तेदार जो बड़ी संख्या में थे। श्रवण तो अक्सर शराब के नशे में रहता और उसके घर वाले भी श्रवण की गलत हरकतों का ही समर्थन करते। श्रवण की गलत हरकतों के चलते ही सुप्यारी के परिवार और श्रवण के परिजनों में रंजिश चली आ रही थी। शराब के नशे में धुत श्रवण ने एक दिन तो सुप्यारी के घर में आग भी लगा दी थी। जैसे-तैसे लोगों ने आग पर काबू पाया। दोनों परिवारों में रंजिश के बाद तो श्रवण की गलत हरकतें बढ़ती गईं। नशे में सुप्यारी के घर के सामने गाली-गलौच करना और कभी-कभी तो नंगा हो जाना श्रवण की गलत हरकतों में शामिल था। उस दिन भी श्रवण नशे में था। बाहर से उसके दो मिलने वाले भी उसके पास आए हुए थे। तीनों ने जमकर शराब पी थी। शराब के नशे में धुत तीनों ही व्यक्ति आपस में झगडऩे लगे। फिर वही आदत के मुताबिक श्रवण का निशाना बना सुप्यारी का परिवार। आए दिन गाली-गलौच व मारपीट से परेशान सुप्यारी, उसके पति, चचेर ससुर व देवर ने मिलकर उस दिन श्रवण पर ताबड़तोड़ वार कर दिए। श्रवण की गलत हरकतों से वे बहुत परेशान हो गए थे। उन्होंने उसको जमकर पीटा। श्रवण पंद्रह दिनों तक हॉस्पीटल में जिन्दगी और मौत के बीच जूझता रहा और फिर पंद्रह दिन बाद उसकी मृत्यु हो गई। श्रवण की हत्या के मामले में सुप्यारी, उसके पति, चाची सास, चचेर ससुर सहित सात जनों को उम्रकैद हो गई। इस हादसे ने सुप्यारी को कहीं का नहीं छोड़ा। पति के साथ जेल पहुंची पचास वर्षीय सुप्यारी के बच्चों की पढ़ाई छूट गई। उसके बच्चे खाने-पीने के भी मोहताज हो गए।पीछें सुप्यारी की बूढ़ी सास की देखभाल करने वाला भी कोई नहीं रहा। बच्चों व सास का जिक्र करते ही सुप्यारी सुबकने लगती थी। उसका बड़ा बेटा पंद्रह साल का और छोटा बेटा दस साल का ही तो था। उसके दो बेटियां भी थीं। मां-बाप को जेल होने पर वे कभी अपनी मौसी के पास चले जाते , तो कभी अपनी नानी के पास। काफी समय तक उसने अपने लाडलों की शक्ल तक नहीं देखी थी। परिवार में पीछे उनकी देखभाल करने वाला भी नहीं था बच्चों की चिंता में उसे तो हर दिन पहाड़ सा लगता था। फिर सजा भी उम्रकेद थी। सुप्यारी को तो अपने बच्चों का भविष्य अंधकार में नजर आ रहा था। जेल में वह अक्सर खोई-खोई रहती थी।

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