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बुधवार, 12 अगस्त 2009

महिला कैदी-5
मेरी किताब सलाखों में सिसकती सांसे की पांचवी कड़ी

जिंदगी नरक बनी

जमीन हथियाने की जेठ की गलत नीयत ने संतोषी की जिन्दगी को तबाह करके रख दिया। परिस्थितियों ने उसके खिलाफ ऐसा मोर्चा खोला कि उसका ससुराल छूट गया, पति पागल हो गया और उसके बच्चे बेघर। इन्ही परिस्थितियों ने संतोषी को सास के कत्ल के जुर्म में सलाखों में पहुंचा दिया। संतोषी को अपनी सास की हत्या करने के जुर्म में उम्र कैद की सजा हो गई। वह उन ग्यारह अपराधियों में शामिल हो गई जिन्होंने उसकी सास की हत्या की। जेठ ने दर्ज कराए केस में इन ग्यारह लोगों पर यही इल्जाम लगाया कि इन्होंने उसकी नब्बे वर्षीय अन्धी मां को कुएं में धकेलकर मार दिया। इस सम्बन्ध में संतोषी कुछ अलग ही दास्तां बयां करती हैै। उसकी जुबां एक अलग ही ऐसा दर्दनाक मंजर सामने पेश करती है, जिसके चलते वो कहीं की नहीं रही और उसकी जिंदगी नरक बनकर रह गई। तीस वर्षीय संतोषी केेमुताबिक उसकी शादी अजमेर जिले के एक गांव में हुई। घर में खुशहाली थी। पति खेत में काम करते थे और वह उसके काम में हाथ बंटाती थी। शादी के शुरुआती तीन साल सुखद व खुशी-खुशी बीते। इसी दौरान उसके एक बेटी व एक बेटा हुआ। संतोषी का जेठ पूरी जमीन हड़पना चाहता था। वे दो भाई थे और उसकी नजर अपने छोटे भाई की जमीन पर थी। जमीन का एक बड़ा हिस्सा व कुआं संतोषी के पति के नाम ही था। जेठ चाहता था कि वह जमीन भी उसी के हिस्से मेंं आ जाए। संतोषी का आरोप था जेठ की इस बदनियति के चलते ही उसने उसके पति को खाने-पीने में ऐसा कुछ खिला दिया कि वह कुछ वक्त बाद ही पागल हो गया। उसकी याददाश्त जाती रही और वह मारा-मारा फिरने लगा। स्वार्थ के चलते भाई का प्यार व रिश्ता भी गौण हो गया और मकसद हो गया जमीन हड़पना। पति के पागल होते ही संतोषी पर तो मानो पहाड़ टूट पड़ा। उसे तो अपना व अपने बच्चों का भविष्य अन्धकारमय नजर आने लगा। दो माह की बेटी व डेढ़ साल के बेटे को देख वह अक्सर गमगीन हो जाती और चिंतित हो उठती उनके मुस्तकिल के बारे में सोचकर। पति के पागल होने के बाद कुछ वक्त तो वह ससुराल में रही लेकिन सास और जेठ की प्रताडऩा ने उसे घर छोडऩे पर मजबूर कर दिया। संतोषी के अनुसार जेठ को यह लगता था कि संतोषी उसके जमीन हड़पने में रोड़ा है। इसी के चलते उनका यह प्रयास था कि वह ससुराल छोड़कर कहीं चली जाए और फिर कहीं अन्यत्र शादी कर ले। ससुराल वालों की प्रताडऩा के चलते वह अपने पीहर आ गई। उसके बच्चे भी ननिहाल में पढऩे-लिखने लगे। एक लम्बे वक्त की उथल-पुथल के बाद संतोषी का जीवन फिर से धीरे-धीरे सामान्य होने लगा लेकिन पति की पीड़ा उसके दिल मेंं कांटा बन गई, जो उसे अक्सर चुभता रहा। इस बीच वह अपने पति की खैर-खबर लेती रही और ससुराल की अपनी जमीन पर भी नजर रखी। वक्त के मरहम ने उसके घाव को कुछ भरा ही था कि उस पर तो फिर पहाड़ टूट पड़ा। उसकी नब्बे वर्षीय अन्धी सास कुएं में गिरी मिली। संतोषी, उसके दो भाई, दो भाभियों सहित ग्यारह जनों पर उसकी सास को कुएं में धकेलकर मारने का आरोप लगा। और फिर इसी जुर्म के चलते संतोषी जेल पहुंच गई। जेल मेंं ससुराल व पति का जिक्र होते ही उसकी आंखों से आंसू टपकने लगते। पति का खयाल आते ही वह सुबकने लगती। उसका वैवाहिक जीवन तो मात्र तीन साल का ही रहा और वियोग का जीवन ग्यारह साल का और फिर शुरू हो गया, जेल का जीवन।जेल मेंं बच्चों के भविष्य को लेकर वह इतनी चिंतित नहीं रहती, जितनी अपने पति को लेकर दुखी रहती। रो पड़़ती जब उसको याद आता कि उसका पति फटेहाल स्थिति में घूमता रहता है, तो कभी मिट्ïटी में मुंह देकर पड़ा रहता है। इस पूरे घटनाक्रम के दो पहलू सामने आते हैं। संतोषी को अपने गुनाह की सजा मिली या जेठ के गुनाह की, यह तो ईश्वर ही जाने, लेकिन उनके गुनाह ने इस पूरे परिवार को सजा भुगतने को मजबूर कर दिया। पति-पत्नी जुदा हो गए और बच्चे बेघर।

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