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मंगलवार, 25 अगस्त 2009

महिला कैदी-8
मेरी किताब सलाखों में सिसकती सांसे की आठवीं कड़ी

अवैध संबंधों ने की जिंदगी तबाह

खास रिश्तों में ही अगर अवैध शारीरिक सम्बन्ध होने लगे तो जाहिर है दुष्परिणाम खतरनाक ही होते हैं। शान्ति से जुड़ा वाकिया तो यही दर्शाता है। शान्ति के अपने खास चाचा से अवैध सम्बन्ध हो गए। उनके इन संबंधों का ही नतीजा निकला कि शान्ति ने चाचा के साथ मिलकर अपनी ही चाची का कत्ल कर डाला। शान्ति की इस हरकत ने पूरे परिवार को अशान्ति की ओर धकेल दिया। शादीशुदा शान्ति का ठिकाना जेल हो गया। उसे उम्रकैद की सजा हो गई। नागौर जिले के एक गांव की शान्ति के माता- पिता खेती करते थे। उसके पिता के तीन भाई थे। वे भी खेती ही करते थे। अपने चाचा वगैरह के सामने ही पली बढ़ी शान्ति का उम्र में बड़े अपने ही एक चाचा सोहन से शारीरिक सम्बन्ध हो गए। दोनों ने अपने रिश्ते और उसकी गरिमा को भुला दिया। नजदीकी रिश्ता होने के चलते उन पर किसी को शक नहीं हुआ और वे गलत राह की ओर बढ़ते रहे। सोहन भी अपनी पत्नी की उपेक्षा करने लगा और अपनी भतीजी में अधिक रुचि लेने लगा। दोनों के नाजायज रिश्ते का ही नतीजा रहा कि सोहन ने अपनी पत्नी को तलाक दे दिया। हालांकि चाचा- भतीजी का यह अवैध सम्बन्ध पहले दबा रहा। उधर शान्ति की भी शादी कर दी गई। वह ससुराल भी जाने लगी। शादी के बाद भी उसने अपने चाचा से सम्बन्ध बनाए रखे। उसने अपने पति को भी अंधेरे में रखा। उधर अपनी पत्नी को छोड़े सोहन को कुछ बरस हो गए थे। उसे अपने पति के साथ उसकी भतीजी से सम्बन्ध का पता चल गया था।सोहन की पत्नी अपने पति की जमीन में हिस्सा भी चाहती थी। यही वजह थी कि तलाक के छह- सात साल बाद भी वह ससुराल के सम्बन्ध में पूरी जानकारी रखे हुए थी। इस बीच सोहन की पत्नी अपने ससुराल आई हुई थी। उसे सोहन और उसकी भतीजी शान्ति के संबंधों का पता पहले से था। उधर अपने नाजायज सम्बन्धों का पता लग जाने पर सोहन और शान्ति बुरी तरह बौखला गए थे। उन्हें अपनी बदनामी का भी डर था। दूसरी तरफ सोहन यह भी नहीं चाहता था कि उसकी दो सौ बीघा जमीन मे उसकी पत्नी को किसी प्रकार का हिस्सा मिले। इसी के चलते सोहन ने शान्ति के साथ मिलकर अपनी पत्नी को जलाकर मार डाला। सोहन की पत्नी तो दुनिया छोड़ गई लेकिन सोहन और शान्ति की दुनिया खराब हो गई। दोनों को हत्या के जुर्म में उम्र कैद हो गई और दोनों का ठिकाना बन गई जेल की कोठरी। राह भटकी यह युवती अपने कारनामों से कहीं की नहीं रही। हत्या की घटना शान्ति की शादी के छह साल बाद की है। न उसके कोई सन्तान है और ना ही उसके चाचा के। दोनों की गलत हरकत ने दोनों को कठघरे में पहुंचा दिया। ससुराल से उपेक्षित तीस वर्षीय शान्ति का लम्बा ठिकाना जेल ही बन गया। जेल से छूटने पर उसकी जिन्दगी किस ओर रुख करेगी, वह खुद नहीं जानती थी। उसके बहके कदमों ने उसे कहीं का नहीं छोड़ा।

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