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मंगलवार, 25 अगस्त 2009

महिला कैदी-9
मेरी किताब सलाखों में सिसकती सांसे की नोवीं कड़ी

हमसफर का कत्ल
तीस वर्षीय बसन्ती अपने तीनों बच्चों से दूर हो गई। न वह घर की रही न घाट की। ससुराल भी छूट गया और पीहर वालों ने भी उससे पल्ला झाड़ लिया। उसके अपने बच्चे भी उससे नफरत करने लगे। बसन्ती ने अपने ही हाथों अपने परिवार को तबाह कर लिया। बसन्ती ने दो जनों के साथ मिलकर अपने ही पति का कत्ल कर दिया। वैवाहिक जीवन के लगभग साढ़े आठ साल बाद उसने इस क्रूर हादसे को अंजाम दिया। पति को उसने इसलिए नहीं मारा कि वह उससे नफरत करती थी बल्कि इसलिए कि वह किसी और में दिलचस्पी लेने लगी थी। पति उसके लिए रोड़ा बना था। मूलत: पंजाब की रहने वाली बसन्ती की शादी हनुमानगढ़ जिले में हुई थी। अच्छा खासा ससुराल था। जमीन थी, जहां नहरों के पानी से सिंचाई होती थी। पति खेती का काम करते थे। वह भी अपने खेत में पति का हाथ बंटाती थी। उसके पांच जेठ थे। सब मिलजुलकर रहते थे। शादी के डेढ़ साल बाद उसके लड़का हुआ। और फिर वह एक के बाद एक तीन लड़कों की मां बनी। पति- पत्नी के बीच ठीक बनती थी। उनका गृहस्थ जीवन खुशहाल था। शादी के लगभग सात साल बाद बसन्ती दिग्भ्रमित हो गई। वह अपने पड़ोस में रहने वाले भंवर के जाल में फंस गई। भंवर बसन्ती के पति राधेश्याम का साथी था। वह अक्सर राधेश्याम के साथ उसके घर आता- जाता था। पड़ोस में होने और अक्सर घर आने जाने की वजह से दोनों की नजदीकियां बढ़ती गईं। बसन्ती और भंवर के बीच शारीरिक सम्बन्ध हो गए। मौका देखकर दोनों अपनी हवस मिटाने लगे। इस बीच बसन्ती को एक और दूसरा व्यक्ति अपने साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाने को मजबूर करने लगा। सम्बन्ध बनाने से इनकार करने पर उसने बसन्ती को उसके व भंवर के अवैध रिश्ते की जानकारी उसके पति राधेश्याम को देने की धमकी दी। ऐसा ही हुआ और उसने राधेश्याम को बसन्ती व भंवर के नाजायज रिश्ते की बात बता दी। पत्नी की बेवफाई से तिलमिलाए राधेश्याम ने बसन्ती के साथ मारपीट की और भंवर से दूर रहने का दबाव डाला। बसन्ती को भंवर का साथ छोडऩा गंवारा नहीं था। अब तो उसे अपना पति उनके संबंधों में रोड़ा नजर आने लगा। राधेश्याम की शराब पीने की कमजोरी को बसंती ने हथियार बनाया। एक दिन मौका देखकर बसन्ती ने शराब में जहर मिलाकर अपने पति को पिला दिया। उसमें बसन्ती का साथ दिया उसके प्रेमी भंवर और भंवर के एक दोस्त ने। शराब पीने से राधेश्याम की मौत हो गई। बसन्ती के बड़े बेटे को मां पर शक हो गया था। दरअसल उसने अपनी मां व भंवर की बातें सुन ली थी। उसने अपने ताउ को यह बातें बताई। और फिर बसन्ती, उसका प्रेमी भंवर और भंवर का दोस्त पहुंच गए सलाखों में। बसन्ती के बेटे ने मां के खिलाफ गवाही दी और अपनी मां की काली करतूतों के बारे में बताया। इस मामले में तीनों को उम्रकैद हो गई। बसन्ती तो कहीं की नहीं रही। उसके तीनों बच्चे छूट गए। जेल पहुंचने के बाद तो वह अपने बच्चों का मुंह देखने के लिए भी तरस गई। उसके ससुराल व पीहर वालों ने भी उससे कन्नी काट ली। तीन बच्चों के बाद प्रेमजाल में फंसी बसन्ती तो खुद प्यार, अपनत्व व हमदर्दी की मोहताज बन गई थी।वह नहीं जानती थी जेल से छूटने पर उसकी जिंदगी किस ओर रुख करेगी।

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