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शुक्रवार, 28 अगस्त 2009

महिला कैदी-12

मेरी किताब सलाखों में सिसकती सांसे की बारहवी कड़ी

नाजायज होने की सजा

छह माह के मासूम छोटू का कोई गुनाह नहीं था। वह तो मां की गोद में खुद को महफूज समझता था। छोटू हंसता- खेलता और फिर मां के आंचल में दुबककर चैन की नींद सो जाता। वह नन्ही जान भला क्या जान पाता कि चैन की नींद सुलाने वाली उसकी खास मां ही उसे एक दिन मौत की नींद सुला देगी। ऐसा ही हुआ। सीता ने अपने ही छह माह के जिगर के टुकड़े को जहर देकर मार डाला। जहर तो सीता और उसके प्रेमी ने भी खाया था अपनी इहलीला खत्म करने को। लेकिन वे दोनों बच गए और नïन्हा छोटू हमेशा के लिए दुनिया से रुखसत हो गया। सीता और उसके प्रेमी को उम्रकैद हो गई एक मासूम की जान लेने के आरोप में। यह दास्तान है पैंतीस वर्षीय सीता की। अलवर की सीता की जिन्दगी शादी के बाद अच्छी खासी चल रही थी। पति सोहन ट्रक ड्राइवर था। वह अपनी कमाई से अपने परिवार वालों का पेट पाल रहा था। इस बीच सीता के एक लड़का व एक लड़की हुई। शादी के लगभग सात वर्ष बाद सीता राह भटक गई। वह अपने पड़ोस में रहने वाले अविवाहित युवक मंगल को चाहने लगी। दोनों में शारीरिक सम्बन्ध हो गए। सीता ने अपने पति को अंधेरे में रखा और उससे बेवफाई की। दोनों के बीच सम्बन्ध बढ़ते गए और वे चल पड़े दिशाहीन राह की ओर। दोनों के नाजायज सम्बन्ध का नतीजा निकला नाजायज सन्तान के रूप में। सीता के मंगल से अवैध सम्बन्ध के चलते छोटू पैदा हुआ। सीता का पति सोहन उनके इन अवैध रिश्तों से अनजान था। वह तो कई- कई दिनों तक घर से दूर रहकर अपनी पत्नी व बच्चों के गुजारे के लिए ट्रक ड्राइवरी करता था। उसकी पत्नी पीछे से क्या गुल खिला रही है, वह नहीं जानता था। सीता व मंगल का अवैध सम्बन्ध लगभग पांच- छह साल तक चला, लेकिन एक दिन दोनों पकड़े गए। फिर तो सोहन को यह भी पता चल गया कि छोटू उसका बेटा नहीं है। वह अवैध सन्तान है। सोहन ने यह सब जानकर भी होश से काम लिया। उसने अपनी पत्नी सीता को समझाया कि वह मंगल से अपने सम्बन्ध तोड़ लें, वह उसको व बच्चे को अपना लेगा। अवैध सन्तान को भी वह अपने ही बच्चे का दर्जा देगा। लेकिन गलत राह की ओर आगे तक बढ़ चुकी सीता ने अपने पति की एक न सुनी। उसने मंगल से रिश्ते बनाए रखे। उसने खुल्लमखुल्ला इस रिश्ते को स्वीकारा और कहा कि वह मंगल से सम्बन्ध नहीं तोड़ेगी। और फिर एक दिन सीता और मंगल ने साथ न रह पाने पर एक साथ मरने का फैसला कर लिया। प्यार में पागल दोनों ने आगे- पीछे की कुछ न सोची। न अपने बारे में सोचा और न अपनों के बारे में। दोनों ने अपने साथ ही छह माह के छोटू को भी मारने का फैसला कर लिया। उस छोटू को जो अपनी मां के अलावा दुनिया के हर रिश्ते से अनजान था। सीता और मंगल ने जहर खा लिया और उन्होंने छह माह के छोटू को भी जहर खिला दिया। जहर के असर से छोटू की जान चली गई। उधर सीता और मंगल को अस्पताल में भर्ती कराया गया। आठ दिन अस्पताल में भर्ती रहने के बाद दोनों बच गए लेकिन नन्हा छोटू तो पहले ही दुनिया को अलविदा कह गया। छोटू को मारने के आरोप में सीता और मंगल को उम्र कैद हो गई। सीता की गलत हरकत ने न केवल एक मासूम की जान ले ली बल्कि पूरे परिवार को अंधकार की ओर धकेल दिया। सीता के बेटे व बेटी के भविष्य पर भी प्रश्न चिह्नï लग गया। इस सबके बाद भी दुखद पहलू यह था कि सीता फिर भी आगे मंगल के साथ ही रहने को कहती थी। सीता का पति सोहन इतना सबकुछ होने पर भी उसे अपनाने व उसकी मदद को तैयार था। उससे मिलने वह जेल भी जाता था, लेकिन दिग्भ्रमित कुंद बुद्धि की सीता तो आगे भी गलत राह की ओर चलना चाहती थी।

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