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सोमवार, 10 अगस्त 2009

महिला कैदी-3
मेरी किताब सलाखों में सिसकती सांसे की तीसरी कड़ी

घर, ना ठिकाना

पति की अय्याशी की आदत ने नजमा को कातिल बना दिया। वह नहीं चाहती थी उस महिला का कत्ल करना। नजमा तो यही चाहती थी कि वह महिला उसके पति की जिन्दगी से निकल जाए। उन्हें सुख-चैन की जिन्दगी गुजारने दें। पहले पति की मौत के सदमे से भी तो वह मुश्किल से उबर पाई थी। अपने व तीन बेटे-बेटियों के भविष्य की खातिर ही तो उसने यह दूसरी शादी रचाई थी। सुख-चैन की खातिर रचाई दूसरी शादी ही उसकी बर्बादी का कारण बन गई। अय्याश पति की हरकतों से परेशान नजमा ने एक महिला का कत्ल कर दिया। उस महिला से उसके पति के नाजायज रिश्ते थे। नजमा ने यह कारनामा अपनी मां के साथ मिलकर किया। कत्ल के जुर्म में दोनों मां-बेटियों उम्रकैद की सजा हुई। इस हादसे ने नजमा के चार बेटे-बेटियों को सड़क पर ला दिया। उसके अपने छोटे भाई भी बेघर हो गए। दोनों मां-बेटियों का घर जेल हो गया। पति ने भी नजमा को अपने हाल पर छोड़ दिया। अट्ठाइस वर्षीय नजमा का शुरुआती वैवाहिक जीवन खुशियों से भरपूर था। उसकी शादी यू.पी. के एक शहर में हुई। उसका पति सिलाई मशीन सुधारने का काम करता था। घर में सब कुछ अच्छा खासा चल रहा था। इस बीच नजमा के तीन संतानें हुईं। दो लड़के व एक लड़की। समय ने पलटा खाया और नजमा के उल्टे दिनों की शुरुआत हो गई। उसका पति टी बी की चपेट में आ गया। और एक दिन इसी बीमारी की वजह से वह दुनिया छोड़ गया। पीछे रह गए नजमा और उसके तीन मासूम बच्चे। शादी के आठ साल बाद ही उसका पति मर गया। नजमा जवानी में ही विधवा हो गई। उसे अपना व अपनी संतान का भविष्य अंधकारमय नजर आने लगा। वह अपने बच्चों के साथ पीहर लौट आई। लगभग पांच साल तक वह अपने पीहर ही रही। फिर उसने अपने बच्चों की खातिर दूसरी शादी करने का फैसला किया। दूसरी शादी करने के बाद नजमा को पता चला कि उसके दूसरे पति के पहले से एक पत्नी है। दूसरे पति ने उससे धोखे से शादी कर ली। पति ने अपनी पत्नी व तीन बच्चों के बारे में भी उसे नहीं बताया था। दूसरी शादी के नाम पर धोखा मिलने के बावजूद नजमा ने सब्र किया। अपना लिया उस धोखेबाज पति को अपने मासूम बच्चों के भविष्य की खातिर। नजमा के दूसरे पति के अच्छा- खासा काम था। अच्छी आय थी। इस बीच नजमा के दूसरे पति से एक लड़का हुआ। नजमा का दूसरा पति अय्याश किस्म का तो था ही। उसकी इस गलत आदत के चलते ही उसके फिर एक महिला से अवैध सम्बन्ध हो गए। नजमा पर तो मानो पहाड़ टूट पड़ा। उसने पति को खूब समझाया। नजमा को तो फिर अपना घर उजड़ता नजर आने लगा। और फिर एक दिन बौखलाई नजमा ने उस महिला को कमरे में बन्द कर तेल छिड़ककर मार डाला। इस काम में साथ दिया उसकी मां ने। वह नहीं चाहती थी फिर से बसाई अपनी गृहस्थी को उजाडऩा। उसकी दूसरी शादी को भी तो अभी दो साल ही हुए थे। उसे यह भी भान नहीं रहा कि इस गलत हरकत से भला क्या उसका गृहस्थ-जीवन बच पाएगा? इस अपराध के चलते नजमा व उसकी मां को उम्रकैद हो गई। नजमा का मासूम सवा दो साल का बेटा भी उसके साथ जेल पहुंच गया। मां के साथ रहने की मजबूरी ने इस मासूम के बचपन पर पहरे लगा दिए। जेल से बाहर छूटे नजमा के तीनों बेटे-बेटी भी बेघर हो गए। उधर मां के जेल पहुंचने से नजमा के दो भाई भी कहीं के नहीं रहे। नजमा के पिता तो पहले ही गुजर चुके थे। दोनों मां-बेटियों की सुनवाई और सुध लेने वाला घर में कोई नहीं था। नजमा का पति भी उसे छुड़ाना नहीं चाहता था। वह जेल में बन्द अपने बेटे को तो ले जाना चाहता था। वह तो फिर किसी एक नई महिला को अपने साथ रख रहा था। नजमा अपने व बेटे-बेटियों के बारे में सोचकर मायूस रहती थी। उसे तो कोई उम्मीद की किरण भी नजर नहीं आती थी।

1 टिप्पणी:

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

क्या यही है महिला की नियति?