महिला कैदी-2
मेरी किताब सलाखों में सिसकती सांसे की दूसरी कड़ी
तबाह कर गया नाजायज रिश्ता
नाजायज रिश्ते जिन्दगी कब किस मुकाम पर लाकर खड़ा कर दें, कुछ कहा नहीं जा सकता। क्षणिक सुख का एहसास कराने वाले ये अवैध सम्बन्ध जिन्दगी को नरक बनाकर ही छोड़ते हैं। बयालीस वर्षीय रमना की जिन्दगी से जुड़ा वाकिया भी यही दर्शाता है। पति के गुजरने के बाद रमना एक व्यक्ति के प्रेम जाल में फंस गई। उनका यह प्रेम कुछ वर्ष चला लेकिन प्रेमी उसके लिए गले की हड्डी बन गया। उनके सम्बन्ध के बारे में उसके बेटे सहित कुछ लोगों को शक होने पर प्रेमी से परेशान इस महिला ने अन्तत: प्रेमी की हत्या कर दी। इस अपराध के चलते उसे उम्र कैद की सजा सुना दी गई। रईसों की सी जिन्दगी गुजारने वाली व प्रधानाध्यापिका रह चुकी एम.ए. पास इस महिला ने सपने में भी नहीं सोचा था कि जेल की कोठरी भी उसका मुकाम होगा। रमना की रईसाना जिन्दगी रही। उसके पिता पुलिस अधिकारी थे। बचपन से ही वह पढऩे लिखने व गेम्स आदि में अग्रणी रही। उसकी शादी मुम्बई में एक अच्छे परिवार में हुई। उसके पति एक कम्पनी में अच्छे ओहदे पर थे। घर में खुशहाली थी। पति की अच्छी आय थी। ऐशो आराम व सुकून भरी जिन्दगी थी। उसके पास वे सब खुशियां थीं, जो हर किसी की किस्मत में नहीं होती। इस दौरान उसके एक लड़का व एक लड़की हुई। रमना की सुकून भरी जिन्दगी में एक भूचाल उस वक्त आया जब उसके पति की बीमारी से मृत्यु हो गई। उसके लिए यह गहरा सदमा था। फिर वह राजस्थान आ गई और यहां एक सरकारी स्कूल में टीचर हो गई। एम.ए.तक पढ़ाई कर चुकी रमना नौकरी मिलने पर फिर से नॉर्मल होकर गुजर बसर करने लगी। लेकिन इस बीच वह एक व्यक्ति के प्रेम जाल में फंस गई। रमना और उस व्यक्ति का यह अवैध रिश्ता छिप नहीं सका और कई लोगों को इसका शक हो गया। उसके बेटे को भी उन पर शक होने लगा। उधर प्रेमी की हरकतों से भी वह परेशान हो उठी। अवैध सम्बन्ध उसकी परेशानी का सबब बन गया। और एक दिन रमना के घर के पीछे के सूने पड़े मकान में उस व्यक्ति की लाश मिली। रमना को इस अपराध का दोषी माना गया। उसे हत्यारिन करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुना दी गई। कत्ल की घटना १९९८ में हुई। रमना के पति की मृत्यु १९९३ में हो गई थी। पिछले चौदह साल रमना की जिन्दगी में उथल- पुथल वाले ही रहे। पढ़ाई कर रहे अपने बेटे के कैरियर को लेकर वह जेल में चिंतित रहती थी। हालांकि उसने अपनी बेटी का ब्याह कर दिया था लेकिन फिर भी वह अपने परिवार की चिंता में डूबी रहती थी। अब तो जेल का जीवन ही उसकी दिनचर्या में शामिल था। वह जेल में अक्सर अपने अच्छे दिनों की याद में खो जाती थी। जब वह स्कूल की प्रधानाध्यापिका थी और कई टीचर उसके अधीन काम करती थीं। वह बच्चों का कैरियर बनाने में जुटी रहती थी, लेकिन अब... खुद उसका कैरियर...? इस हादसे से उसकी नौकरी भी जाती रही और अच्छे दिन भी। बचपन से डायरी लिखने की शौकीन रमना की जिन्दगी खुद एक किस्सा बन गई थी। वह बचपन से लेकर जेल से आने पूर्व तक डायरी लिखती थी, लेकिन जेल में आने के साथ ही उसका डायरी लेखन भी छूट गया। शायद जेल से छूटने के बाद वह फिर से डायरी लिखे, जिसका विषय उसकी जेल की जिन्दगी हो। इसमें छिपा हो ऐसा सबक, जो सबको सीख दे सही राह चलने की।
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शनिवार, 8 अगस्त 2009
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1 टिप्पणी:
Chand Bhai , behtareen post ....
aap dard ki us kahani ko aawaz aur alfaaz de rahe hai, jo shaayad nsuni hi rah jati...!
Pratima Sinha
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