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बुधवार, 19 अगस्त 2009

महिला कैदी-6

मेरी किताब सलाखों में सिसकती सांसे की छठी कड़ी

अंधकारमय भविष्य
युवा रतनी अपने हमउम्र कैलाश के प्यार में इतनी अंधी हो गई थी कि उसे आगे-पीछे का कुछ नजर नहीं आता था। वह तो रात-दिन प्यार में पागल रहती थी।दरअसल जिसे वो प्यार समझती थी, वो मात्र शारीरिक आकर्षण था। वो लड़का भी उसके शरीर को ही भोगता था। रतनी तो इस ओर भी नहीं सोचती थी कि घर वालों ने बचपन में ही उसके हाथ पीले कर उसे किसी और का बना दिया है। उन दोनों ने नहीं सोचा था कि उनकी इस गलती के चलते सुख-चैन उनसे कोसों दूर चला जाएगा। ऐसा ही हुआ। हालात ऐसे बने कि रतनी ने अपनी ही चाची का कत्ल कर डाला। इसी जुर्म के चलते वह पहुंच गई जेल क ी सलाखों में। राह भटकी इस इक्कीस वर्षीय रतनी के घर वाले खेती करते थे। छह बहन-भाइयों में चौथे नम्बर की रतनी अपने हमउम्र कैलाश के सम्पर्क में आई और फिर चल पड़ी गलत राह की ओर। दोनों में शारीरिक सम्पर्क होने लगा। कुछ वक्त तो उनका यह मामला दबा रहा, लेकिन एक दिन उन दोनों को आपत्तिजनक स्थिति में रतनी की चाची ने देख लिया। पकड़े जाने पर वे दोनों बौखला गए और इस गलती को छिपाने के लिए अंजाम दे डाला उससे भी बड़ी गलती को। रतनी ने अपने साथी कैलाश के साथ मिलकर अपनी ही तीस वर्षीय चाची को मौत के घाट उतार दिया। दोनों ने उस महिला पर ताबड़तोड़ वार कर उसे मौत की नींद सुला दिया। एक के बाद की इस दूसरी गलती ने दोनों को सलाखों में पहुंचा दिया। उनका गुनाह छिप नहीं सका और दोनों को उम्रकैद की सजा हो गई। जवानी की गलती ने दोनों की जवानी को कैद कर दिया। इस भूल ने रतनी को कहीं का नहीं छोड़ा। वह अपनों की नजर में गिर गई और बचपन में तय किया ससुराल भी उसके हाथ से निकल गया। उसकी जिन्दगी के सामने कई सवाल खड़े हो गए जिनके जवाब वो खुद नहीं जानती थी। इस ग्रामीण बाला का विवाह नजदीक के ही एक गांव में पांच वर्ष की उम्र में ही कर दिया गया था। पहले तो ससुराल वाले उसे ले जाना चाहते थे, लेकिन उसके रंग-ढंग देख उसका पति भी उससे नफरत करने लगा था। बचपन में बनी पत्नी को लाने से उसने इनकार कर दिया। उसने दूसरा विवाह कर लिया। शादी के बाद रतनी एक बार भी ससुराल नहीं गई थी। उन्नीस साल की उम्र में रतनी जेल पहुंच गई उम्रकैद की सजा भुगतने। उसकी नादानी और नाजुक उम्र ने उसे सजा दिला दी उïम्रकैद की। सजा होने पर जेल में मम्मी-पापा रतनी से मिलने आते थे। वह जेल में निवार बनाने, झाड़ू और रोटी बनाने का काम करती थी। भविष्य के बारे में पूछने पर उसके चेहरे पर एक साथ कई प्रश्न उभर आते थे। वो खुद नहीं जानती थी आगे क्या होगा? जेल से जल्द छूट भी जाएगी तो उसकी आगे की जिन्दगी किस ओर रुख करेगी, पता नहीं? अगर सजा बरकरार रहती है तो उसकी जवानी तो जेल में ही पूरी हो जाएगी? बाद में कौन उसका साथ देगा? तब तो माता-पिता खुद सहारे के मोहताज हो जाएंगे। यह सब सोचकर वो गंभीर हो जाती थी। खो जाती थी अंधेरे भविष्य के अंधकार में।

1 टिप्पणी:

pratima sinha ने कहा…

चान्द भाई ,रमज़ान मुबारक हो. आपका दामन खुशियो और बरकत से भरा रहे, ये दुआ करती हू.
सलाखो मे सिसकती ज़िन्दगी , हर बार मन को भिगो जाती है.

”मै” प्रतिमा !!!!!!